अस्थमा फेफड़ों से जुड़ी एक लॉन्ग टर्म की बीमारी है. इस बीमारी में वायुमार्ग में सूजन आ जाती है और व्यक्ति को सांस लेना मुश्किल हो जाता है. भारत में लगभग 1.3% अरब लोग, 6% बच्चे और 2% वयस्क अस्थमा से ग्रस्त हैं. ऐसे में इस बीमारी के बारे में जानना जरूरी है.वायु प्रदूषण से अस्थमा क्यों बढ़ रहा है, आज का हमारा लेख इसी विषय पर है. आज हम आपको बताएंगे कि अस्थमा का असल कारण क्या है और ये होता कैसे है आईये जानते है अस्थिमा क्यों होता है
वायु प्रदूषण से अस्थमा क्यों बढ़ रहा है?
लोगों को ‘स्मॉग’ या धुंध के कारण परेशानी हो रही है. खासकर अस्थमा की समस्या सर्दी के मौसम में ज्यादा होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस दौरान कम धूप और कम हवाएं हमारे आस-पास होती हैं.
ओजोन फेफड़ों और वायुमार्ग के लिए बहुत नुकसानदायक होता है. यह सीधे फेफड़ों और वायुमार्ग को प्रभावित करता है. ओजोन फेफड़ों की कार्यक्षमता को भी कम करता है.
अस्थमा वायु प्रदूषण के अन्य रूपों से भी हो सकता है। हवा में मौजूद छोटे-छोटे प्रदूषित हवा के कण नाक और मुंह के जरिये फेफड़ों तक जा सकते हैं. स्मोक, धुंध और हवा में धूल से हवा की गुणवत्ता खराब होती है. इन छोटे-छोटे कणों का अस्थमा के मरीजों पर खतरनाक असर पड़ने का खतरा रहता है. इन कणों की वजह से अस्थमा बदतर स्टेज में पहुंच सकता है. इस वजह से लॉन्ग टर्म और शार्ट टर्म के लिए कई स्वास्थ्य समस्याओं के साथ-साथ फेफड़ों की कार्य क्षमता बाधित हो सकती है और अस्थमा अटैक आने की सम्भावना भी ज्यादा हो सकती है.
अस्थमा मरीज ऐसे रखें अपना ख्याल
बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण के दौरान अपना रिलीवर इन्हेलर साथ लेकर चलें.
मेंन रोड, जंक्शन, बस स्टेशन और कार पार्किंग जैसी ज्यादा प्रदूषित जगहों पर जाने से बचें। इसके बजाय कम भीड़भाड़ वाली गली का इस्तेमाल करें.
उस डॉक्टर से इलाज कराएं जो क्रोनिक बीमारी से सम्बंधित इलाज करता हो और स्थिति ख़राब होने पर हॉस्पिटल में रेफर करता हो.
वक्त पर दवाएं खाएं.
पौष्टिक आहार का सेवन करें.
स्टीम थेरेपी की मदद लें.
अगर जरूरी हो तभी बाहर निकलें.
हर समय मास्क लगाये रखें.