चांद दिखने पर मोहर्रम माह की शुरुआत 18 जुलाई से होगी। मोहर्रम के शुरू के दस दिनों में मुस्लिम धार्मिक स्थलों पर ताजिए रखने की परंपरा है। आमतौर पर ताजिया बांस की लकडिय़ों का बनाया जाता है, लेकिन इस बार अजमेर की भिनाय तहसील के गांव देवलियाकलां में एल्युमिनियम का ताजिया बनाया जा रहा है। ताजिया का निर्माण करने वाले गांव के सत्यनारायण खाती ने बताया कि मुस्लिम समुदाय के लोगों का आग्रह था कि इस बार ताजिए के निर्माण में एल्युमिनियम का भी उपयोग किया जाए ताकि ताजिया आकर्षक हो सके। मुस्लिम समुदाय के आग्रह पर ही उन्होंने एल्युमिनियम का ताजिया बनाया है। यह ताजिया मुस्लिम समुदाय के लोगों को पसंद आ रहा है। चूंकि ताजिए के अंदर मुस्लिम धर्म स्थलों के चित्रों को भी प्रदर्शित किया गया है, इसलिए जब यह ताजिया धार्मिक संगीत के साथ घूमता है तो लोगों को आकर्षित करता है। इस घूमते ताजिए को गांव के इमाम बाड़े में रखा जाएगा। खाती ने बताया कि ताजियों को तैयार करने में काफी समय और श्रम लगा है। लेकिन उन्हें इस बात का संतोष है कि यह ताजिया गांव के मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं के अनुरूप बनकर तैयार हुआ है। उल्लेखनीय है कि मोहर्रम में का प्रदर्शन पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासों की शहादत के तौर पर किया जाता है। मोहर्रम माह मुस्लिम समुदाय में इबादत का माना जाता है। नवासों की शहादत पर मुस्लिम समुदाय अफसोस भी जाहिर करता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह पर चांदी का ताजिया भी रखा जाता है। इसके साथ ही बांस की लकड़ी के कई ताजिए रखे जाते हैं। ताजिए का जुलूस निकालने की परंपरा भी है।