राजस्थान के सैनिक कल्याण राज्य मंत्री राजेंद्र गुढ़ा को 21 जुलाई की रात को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। गुढा ने दिन में विधानसभा में अपनी ही सरकार पर आरोप लगाया था कि महिलाओं को सुरक्षा देने में गहलोत सरकार विफल रही है। गुढा ने कांग्रेस के विधायकों को नसीहत देते हुए कहा कि मणिपुर की घटना पर हंगामा करने के बजाए सरकार को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। हालांकि राजेंद्र गुढ़ा पहले भी सीएम गहलोत और सरकार के खिलाफ बोलते रहे हैं। लेकिन 21 जुलाई को गुढा के कथन को गंभीरता से लेते हुए मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया। अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर यह कहावत सही तौर पर चरितार्थ होती है, बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से आए? सब जानते हैं कि राजेंद्र गुढा ने गत चुनाव बसपा उम्मीदवार के तौर पर लड़ा था। विधायक बनने के बाद गहलोत सरकार को बनाए रखने के लिए गुढा और बसपा के पांच अन्य विधायक रातों रात कांग्रेस में शामिल हो गए। हालांकि बसपा विधायकों मामला आज भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन गुढा और पांच अन्य विधायकों के समर्थन से पांच वर्ष तक चल गई। सीएम गहलोत को पता था कि बसपा के विधायकों की विचारधारा कांग्रेस से मेल नहीं खाती है, लेकिन फिर भी सरकार को बनाए रखने के लिए गहलोत ने बसपा विधायकों को गले लगाया। स्वाभाविक है कि अब जब विधानसभा चुनाव में 70 दिन रह गए है, तब गुढा जैसे विधायक आंखें दिखा रहे हैं। क्योंकि गुढा को अपना निर्वाचन क्षेत्र में फिर से राजनीतिक जाजम बिछानी है, इसलिए कांग्रेस और सरकार का विरोध कर रहे हैं। गुढा को पता था कि उनके ऐसे बयानों से बर्खास्तगी तय है। बर्खास्तगी के बाद गुढा ने कहा है कि वे 24 जुलाई को विधानसभा में सरकार और कांग्रेस की पोल खोलेंगे। यानी बबूल के कांटे भी कांग्रेस और गहलोत सरकार को सहन करने पड़ेंगे। गहलोत ने किन परिस्थितियों में सरकार को चलाया, संभवत: इसी की जानकारी राजेंद्र गुढ़ा विधानसभा में देंगे। यहां यह खास तौर से उल्लेखनीय है कि जुलाई 2020 में राजनीतिक संकट के समय सीएम गहलोत ने कहा था कि आज जो विधायक मेरे साथ हैं, उन्हें मैं ब्याज सहित भुगतान करुंगा। इसमें कोई दो राय नहीं की कि पिछले तीन वर्षों में समर्थक विधायकों ने ब्याज के अलावा मूल रकम भी वसूल ली। अब चूंकि हिसाब बराबर हो गए है, इसलिए आने वाले दिनों में सरकार समर्थक विधायक और मंत्री बिखराव की राह पर चल सकते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि गहलोत ने सभी 13 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन ले रखा है। निर्दलीय विधायक भी सरकार से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। 24 जुलाई को विधानसभा सत्र का अंतिम दिन माना जा रहा है। चूंकि चुनाव से पहले कोई सत्र होने की उम्मीद नहीं है इसलिए राजस्थान की राजनीति में कई बदलाव देखने को मिलेंगे।
21 जुलाई को ही विधानसभा में सरकार समर्थक और मुख्यमंत्री के सलाहकार निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने भी बागी तेवर दिखाए। प्रदेश में हो रहे पेपर लीक के मामलों को उठाते हुए लोढ़ा ने कहा कि यदि पेपर आउट करने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही नहीं हुई तो प्रदेश की जनता इस सरकार को रुखसत कर देगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश के भर्ती बोर्डों को गैंगरीन हो गया है। ऐसे में गैंगरीन वाले हिस्से को काटने की जरूरत है। यदि नहीं काटा तो गैंगरीन पूरे शरीर में फैल जाएगा। संयम लोढ़ा ने कहा कि हाल ही में जब अधिशाषी अधिकारी भर्ती परीक्षा में उत्तीर्ण करवाने के मामले में कांग्रेस सरकार के पूर्व मंत्री को गिरफ्तार किया गया तो एसीबी के डीजी ने मीडिया में गलत बयान दिया। डीजी ने जांच परिणाम आए बगैर ही कहा दिया कि परीक्षा आयोजित करने वाला राजस्थान लोक सेवा आयोग निर्दोष है। लोढ़ा ने सवाल उठाया कि जब अध्यापक भर्ती परीक्षा का पेपर आउट करने के आरोप में आयोग के सदस्य कटारा को गिरफ्तार किया गया है, तब ईओ परीक्षा के मामले में आयोग को क्लीन चिट क्यों दी गई। संयम लोढ़ा ने पेपर लीक के मामले में जिस प्रकार अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया, उससे प्रतीत होता है कि संयम लोढ़ा भी गहलोत सरकार से पीछा छुड़ाना चाहते हैं।महिला अत्याचार और पेपर लीक के मामलों को लेकर भाजपा पहले ही हमलावर है। 21 जुलाई को भी केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, भाजपा के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह और पूर्व मंत्री वसुंधरा राजे ने बलात्कार के आंकड़े प्रस्तुत कर कांग्रेस सरकार को घेरने का काम किया। पेपर लीक के मामले भी लगातार उठाए जा रहे हैं। जब प्रमुख विपक्षी दल गहलोत सरकार पर हमले कर रहा है, तभी सरकार में बैठे मंत्री और समर्थन दे रहे विधायक भी हमला कर रहे हैं। मौजूदा समय में गहलोत सरकार अपने लोगों से ही घिरी हुई है।