31 जुलाई को अजमेर के निकटवर्ती हाथी खेड़ा गांव स्थित सीनियर सैकंडरी स्कूल की अध्यापिका श्रीमती आशा त्रिपाठी सेवा निवृत्त हुई तो लाखों का दिखावा किया गया। हालांकि सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली थर्ड ग्रेड की अध्यापिका अपनी सेवानिवृत्त किस प्रकार ग्रहण करें, यह उनका व्यक्तिगत मामला है, लेकिन जब शिक्षक के कार्य को प्रेरणा देने वाला माना जाता है, तब समाज भी एक अच्छी पहल की उम्मीद करता हे। सब जानते हैं कि कार की लंबाई 27 फिट है, इसलिए अलग से लाइसेंस लेना होता है। कार को प्रशिक्षित ड्राइवर ही चला सकते हैं। 35 वर्ष सरकारी स्कूल में नौकरी करने वाली आशा त्रिपाठी की ख्वाइश तो हेलीकॉप्टर की थी, लेकिन अजमेर का मौसम खराब हो जाने के कारण हेलीकॉप्टर का इंतजाम नहीं हो सका, इसलिए अध्यापिका को मजबूरी में विदेशी कार में आना पड़ा। यह माना कि आशा त्रिपाठी के परिवार में अब पैसे की कोई कमी नहीं है, क्योंकि उनका बेटा एक निजी कंपनी में 90 लाख रुपए के सालाना पैकेज पर काम कर रहा है,जबकि बेटी जयपुर में डॉक्टर है। पति दो वर्ष पहले ही तोपदड़ा स्कूल से पीटीआई के पद से रिटायर हुए हैं। लेकिन अच्छा होता कि आशा त्रिपाठी ऐसा कोई उदाहरण प्रस्तुत करतीं जिससे सरकारी स्कूल के विद्यार्थी खास कर छात्राएं कोई प्रेरणा लेतीं। सरकारी स्कूलों में आज भी छात्राओं के सामने अनेक चुनौतियां हैं। आशा त्रिपाठी जिस हाथी खेड़ा गांव में पढ़ती रहीं, वहां की स्कूलें भी जर्जर स्थिति में है। बरसात में पानी टपकता है तो कई स्कूलों में छात्राओं के लिए समुचित सुलभ शौचालय भी नहीं है। इसी क्षेत्र की एक सरकारी स्कूल की पंरपरा मुंबई के एक परिवार द्वारा कराई जा रही है। अध्यापिका भले ही विदेशी कार में सफर करें, लेकिन स्कूल के विद्यार्थियों को जमीन पर बैठ कर पढ़ाई करनी होती है।