सावन के सोमवार के मौके पर हम आपको ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जिसका निर्माण भरतवंशी राजा ने किया था। जो मंदिर अपनी मनौतियों के लिए मशहूर है।बाराबंकी के जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर नगर पंचायत सिद्धौर के किनारे स्थित है सिद्धेश्वर महादेव मंदिर। यहां स्थापित शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर की वास्तुकला व नक्काशी देखने लायक है। परिसर में ही भगवान शिव की एक बड़ी मूर्ति भक्तों के आकर्षण का केंद्र बनी रहती है। इस मंदिर को लेकर तमाम मान्यताएं हैं। जनश्रुतियों के अनुसार सिद्धौर कस्बे से दक्षिण दिशा में करीब दो किलोमीटर दूर आज का वर्तमान गांव पुरई पहले अजीतपुरा के नाम से प्रसिद्ध था। वहां के राजा अजीत भर जाति के भरतवंशी थे। अजीतपुरा राज्य अवध राज्य के अधीन था। भर्र जाति के लोगों में भगवान शिव ईष्ट देवता के रूप में पूज्य थे। लोग युद्ध के समय भी शिव को अपनी पीठ पर धारण किए रहते थे। युद्ध में पीठ दिखाकर भागना यह लोग भगवान शिव का अपमान समझते थेकहते है कि भरतवंशी राजा अजीत और शाक्य वंशी कपिल वस्तु के राजा शुद्धोधन में अटूट मित्रता थी। इसी के कारण दोनों राज्यों का राज्य साकेत राज्य के अधीन था। दोनों मित्र राजा एक साथ कई धार्मिक स्थलों पर गए इसक्रम में उन्होंने सिद्धौर में शिव मठ पर पूजा-अर्चना कर पुत्र प्राप्त का वरदान मांगा।मनोकामना पूर्ण होने पर दोनों ने संकल्प लिया था कि शिव मंदिर का निर्माण करवाकर उसका एवं पुत्रों के नाम सिद्धेश्वर से संबंधित रखेगें। मनोकामना पूर्ण होने पर राजा अजीत ने अपने पुत्र का नाम सिद्धशरण व राजा शुद्धोधन ने अपने पुत्र का नाम सिद्धार्थ रखा। राजा अजीत के एक पुत्र और हुआ जिसका नाम धनीष चन्द्र था, मान्यता के अनुसार राजा अजीत ने कसौटी स्तंम्भ का शिव विग्रह बनवाकर एक विशाल शिव मंदिर का निर्माण कराया जो श्री सिद्धेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। हर सोमवार को यहां भक्तों की भीड़ लगती है। शिवरात्रि में लगने वाले मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।