हर साल रक्षाबंधन के दिन होती है और इसकी प्रतियोगिता भी होती है उत्तराखंड :देवीधुरा में बग्वाल खेल रक्षाबंधन के दिन ही खेला जाता है.यह खेल चार खामों – वालिक, लमगड़िया, गहड़वाल और चमियाल के बीच खेला जाता है. यह खेल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है
: देवीधुरा में बग्वाल खेल की परंपरा एक अनोखी और रोमांचक सांस्कृतिक गतिविधि है, जो हर साल रक्षाबंधन के दिन मनाई जाती है. इस खेल में 4 खाम – वालिक, लमगड़िया, गहड़वाल और चमियाल शिरकत करती हैं, जो अपनी ताकत और साहस का प्रदर्शन करती हैं. इस खेल के पीछे एक पौराणिक कथा है, जो इसे और भी रोचक बनाती है. कहा जाता है कि पहले यहां नर बलि दी जाती थी, लेकिन एक वृद्धा की गुहार पर मां बाराही ने नर बलि को बंद कर दिया और इसकी जगह बग्वाल खेल की शुरुआत की. तब से यहां यह परंपरा चली आ रही है.
बग्वाल खेल के दौरान, दोनों पक्षों के लोग एक दूसरे पर फलों और पत्थरों से हमला करते हैं. यह खेल न केवल एक प्रतियोगिता है, बल्कि एक सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा भी है. जब एक पक्ष के लोगों के बराबर खून बह जाता है, तो खेल समाप्त माना जाता है. देवीधुरा में बग्वाल खेल की परंपरा उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह खेल न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षक अनुभव है. यह खेल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है और पर्यटकों को इस क्षेत्र की अनोखी परंपराओं से परिचित कराता है.
स्थानीय समुदाय को एक साथ लाता है खेल
इस खेल के माध्यम से स्थानीय लोग अपनी एकता और सौहार्द का प्रदर्शन करते हैं. यह खेल स्थानीय समुदाय को एक साथ लाता है और उनके बीच आपसी संबंधों को मजबूत बनाता है.देवीधुरा में बग्वाल खेल की परंपरा एक अनोखी और रोमांचक सांस्कृतिक गतिविधि है, जो पर्यटकों को आकर्षित करती है. यह खेल उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और स्थानीय लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण परंपरा है. बता दें कि यह खेल कई सालों से यहां खेला जा रहा है. वहीं इस परंपरा को यहां के लोग अभी तक निभाते आ रहे है.