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भारत में संविधान से ऊपर है मुस्लिम कानून, एक देश एक कानून महज एक दिखावा

ये है हाईकोर्ट का फैसला”पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि 15 साल से अधिक उम्र की मुस्लिम लड़की अपनी पसंद से किसी भी व्यक्ति से शादी कर सकती है और उसकी यह शादी वैध मानी जायेगी।न्यायालय ने 16 वर्षीय एक लड़की को अपने पति के साथ रहने की अनुमति देते हुए यह बात कही।”

वैसे तो भारत का संविधान सबको बराबरी का हक देने का वादा करता है पर यही संविधान देश में आम इंसानो के बीच में व्याभिचार पर सजा के मामले में भी पक्षपाती बन जाता है

यहा भारतीय संविधान ने भारत में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार दिया है। हिंदू मैरिज एक्ट भी नागरिकों की विवाह के लिए जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता का सम्मान करता है परंतु भारतीय दंड संहिता इस स्वतंत्रता के विपरीत सीमाएं निर्धारित करती है।

पाक्सो एक्ट जो की 18 साल से कम उम्र में व्यक्ति के साथ यौनाचार या शारीरिक शोषण होने पर लागू होता है मुस्लिम व्यक्ति पर वह लागू नहीं होता

भारतीय वैवाहिक कानून जिसमे लड़की 18 वर्ष से कम आयु तथा लड़का 21 से कम आयु का होने पर विवाह वैध नहीं माना जाता ये कानून भी मुस्लिम पर लागू नहीं होते

इसके अतिरिक्त और भी उदाहरण है

ऐसा ही मामला है भारतीय दण्ड संहिता क़ी धारा 494 का भी है

क्या है IPC क़ी धारा 494
इस धारा के मुताबिक यदि एक स्त्री या पुरुष अपने जीवनसाथी के जीवित रहते हुए, उससे विधिवत संबंध विच्छेद किए बिना दूसरा विवाह करता है तो ऐसे विवाह अपराध माना जाता है।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 494 की परिभाषा
अगर कोई व्यक्ति (पति या पत्नी) पहली पत्नी या पति के जीवित रहते हुए दूसरा विवाह करता है/करती है, तब ऐसा विवाह करने वाला व्यक्ति धारा 494 के अंतर्गत दोषी होगा।

और जान लीजिए सजा भी
इस अपराध में दोषी पति या पत्नी को 7 वर्ष की कारावास और जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।

अब जानिये कैसे होता है भेदभाव

ये संपूर्ण प्रावधान लागू होंगे तो केवल हिन्दुओ पर अर्थात यदि कोई हिंदू पुरुष या हिंदू स्त्री अपनी मर्जी से दूसरा विवाह करें तो धारा 494 में व्यक्त प्रावधान लागू हो जाएंगे पर यदि ये ही कार्य एक मुस्लिम पुरुष य़ा महिला करें तो ये धारा लागू ही नही होगी

यानि यदि वह मुस्लिम नही है तो निश्चय ही सजा का पात्र है और मुस्लिम है तो ये सब उसके लिए जायज है

एक हिंदू पुरुष या स्त्री के लिए उक्त धारा से बचाव के लिए आवश्यक है कि-

(1) अगर पति-पत्नी का तलाक (विवाह विच्छेद) हो गया हो उसके बाद यदि पति या पत्नी दूसरा विवाह करते हो, तो यह अपराध नहीं होता है।

(2)पति य़ा पत्नि बिना किसी सूचना के लगातार सात य़ा अधिक वर्षों से अलग रह रहे हो
(इन सात वर्षों में न पति को पता होना चाहिए पत्नी कहाँ है न पत्नी को पता होना चाहिए पति कहाँ है, तभी वह नियम लागू होगा।)

(3) किसी भी प्रचलित कानूनी प्रक्रिया से सक्षम न्यायालय द्वारा अलग किया गया हो, या किसी पारम्परिक रीति के अनुसार विवाह विच्छेद हुआ हो।

यहा ध्यान देने योग्य बात है कि जहां हिंदू का एक पति/पत्नि के जीवित रहते दूसरा विवाह गैरकानूनी हो जाता है वही एक मुस्लिम एक पति/पत्नि के जीवित रहते दूसरा तो क्या चार विवाह कर सकता है और मजे क़ी बात है क़ी कानून उसे सही मानता है । सजा देना तो दूर क़ी बात उसे ये अधिकार कानूनी रूप से देता है ।

समानता का अधिकार लागू हो पर्सनल लॉ कानून खत्म हो

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Author: cnindia

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