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22/11/2024 8:20 pm

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प्रधानमंत्री के साथ राष्ट्रपति भी करें संसद के नये भवन का उद्घाटन, सरकार बदले फैसला राष्ट्रपति से संसद भवन का उद्घाटन न कराना भारतीय संविधान का अपमान नयी संस्कृति संविधान के धर्म निरपेक्ष स्वरूप के लिए खतरा

अमेठी। संसद के नये भवन के उद्घाटन समारोह में देश की प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को न बुलाए जाने को लेकर देश में तरह तरह की चर्चाएं हो रही है। विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार को निशाने पर लिया है।विश्ववार्ता से बातचीत में कई लोगों ने इस मुद्दे पर खुलकर विचार व्यक्त किए और कहा कि माननीय प्रधानमंत्री जी और राष्ट्रपति जी एक साथ देश के नये संसद भवन का उद्घाटन करे, इससे दुनिया में भारतीय लोकतंत्र की गरिमा और और बढ़ेगी।शोध छात्र व संरक्षक अम्बेडकर यूनिवर्सिटी दलित स्टूडेंट्स यूनियन (बीबीएयू,लखनऊ) बसंत कनौजिया ने कहा कि संसद जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है।संसद से ही आम लोगों की संप्रभुता को अभिव्यक्ति मिलती है।राजनीतिक व्यवस्था में जनता सबसे ऊपर है, जनमत सर्वोपरि है।राष्ट्रपति संसद का प्रमुख अंग है, ऐसे में राष्ट्रपति के हाथों संसद भवन का उद्घाटन होना चाहिए।अटेवा के जिला संयोजक मंजीत यादव ने कहा कि दुनिया के कई देशों में लोकतन्त्र है पर गणतन्त्र नही है जैसे ब्रिटेन पर भारत में लोकतन्त्र के साथ साथ गणतान्त्रित व्यवस्था है जिसमें राष्ट्राध्यक्ष जनता द्वारा चुने जनप्रतिनिधियों द्वारा निर्वाचित होता है इसलिए लोकतन्त्र के सबसे बड़े मन्दिर संसद भवन के उद्घाटन में मा०प्रधानमंत्री जी के साथ साथ महामहिम राष्ट्रपति जी की भी भूमिका होनी चाहिए।समाजशास्त्री डॉ धनंजय सिंह ने कहा कि विपक्ष के पास जनहित से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं है। इसमें विपक्ष राष्ट्रपति को अनावश्यक घसीट रहा है। 2024 में लोकसभा का चुनाव है। संसद के नये भवन का निर्माण केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है। उसे सरकार अगले लोकसभा में विकास कार्य के रूप में पेश करेगी। राष्ट्रपति के उद्घाटन करने पर सरकार चुनाव में इसे अपने कार्य के रूप में दिखा नहीं पायेगी।शकुन्तला भारती
पूर्व सदस्य राज्य महिला आयोग ने कहा कि सेंट्रल वेस्टा प्रोजेक्ट के अन्तर्गत नये संसद भवन का निर्माण हुआ है। मोदी सरकार जो भी काम कर रही है उसका मतलब देश हित से अधिक 2024में चुनावी लाभ है। दलित महिला राष्ट्रपति को बुलाने से उनका प्रचार तंत्र कमजोर हो सकता है।डा सुनील दत्त ने कहा कि देश का प्रथम नागरिक राष्ट्रपति होता है। वह राष्ट्राध्यक्ष होता है। भारत में संघीय प्रणाली लागू है। राष्ट्रपति को इस संघीय प्रणाली का सर्वोच्च माना जाता है। नए संसद भवन का उद्घाटन देश के सर्वोच्च नागरिक राष्ट्रपति से न कराकर राष्ट्राध्यक्ष का ही नही अपितु भारतीय संविधान का भी अपमान है। संवैधानिक पदों का अपमान है। नए संसद भवन का उद्घाटन विनायक दामोदर सावरकर की जयंती पर करना एक बहुत बड़े षड्यंत्र का संकेत है। सावरकर को डॉ अंबेडकर के समकक्ष खड़े करने का प्रयास है। जबकि पूरा देश जानता है देश के नवनिर्माण में सावरकर का क्या योगदान रहा है। प्रधानमंत्री मोदी सावरकर की जयंती पर नए संसद भवन का उद्घाटन कर एक नई संस्कृति कायम करना चाहते हैं। यह भारत और धर्मनिरपेक्ष संविधान के लिए एक खतरा है।

 

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Author: cnindia

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