सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस नेतृत्व वाले विपक्ष ने लोकसभा चुनावों के लिए अपने केंद्रीय मुद्दे तय करने शुरू कर दिए हैं। दोनों तरफ की सियासी पैंतरेबाजी से साफ होने लगा है कि अगला लोकसभा चुनाव अमीर बनाम गरीब, हिंदुत्व बनाम सामाजिक न्याय और मोदी बनाम मुद्दे के बीच ही होगा।क्या लोकसभा चुनाव अपने तय वक्त से पहले हो सकते हैं? क्या उन्हें इसी साल नवंबर-दिसंबर में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ कराया जा सकता है? क्या मोदी सरकार की नौ साल की उपलब्धियों के प्रचार पर जोर इसका संकेत है? यह चर्चाएं और सवाल इन दिनों सियासी गलियारों की कानाफूसी में तैरने लगे हैं। हालांकि अभी यह बातें सत्ता और सियासत के गलियारों में आम नहीं हुई हैं, लेकिन सत्ता के उच्च स्तर पर कुछ खास लोगों ने इस तरह के संकेत देने शुरू कर दिए हैं कि सरकार और भाजपा के शीर्षस्थ स्तर पर इसे लेकर न सिर्फ मंथन चल रहा है, बल्कि यह आकलन भी हो रहा है कि लोकसभा और चार राज्यों के विधानसभा चुनावों को साथ कराने में कितना सियासी फायदा या नुकसान है।वैसे तो भाजपा नेता अकसर कहते हैं कि उनका दल किसी भी वक्त चुनाव के लिए तैयार रहता है, लेकिन इन दिनों जिस तरह भारतीय जनता पार्टी में जिस तरह शीर्ष स्तर पर बैठकों का दौर चल रहा है, मंत्रियों और सांसदों को जिले-जिले भेजकर मोदी सरकार के नौ साल की उपलब्धियों का प्रचार किया जा रहा है।