मसौली बाराबंकी बुधवार को दिगम्बरनाथ मंदिर सिसवारा में चल रही भागवत कथा का समापन विधि विधान से पूजन हवन पश्चात विशाल भण्डारे के साथ हुआ।
इसके पूर्भंव श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन कथावाचक रामहेतु ने भक्ति की अपार महिमा का बड़े ही मार्मिक ढ़ंग से वर्णन करते हुए बताया कि भक्ति में बड़ी शक्ति होती है। भक्ति अमूल्य निधि है, जिसमें भक्त और भगवान एक दूसरे के करीब आ जाते हैं। इसके बिना ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि जब तक भक्त के अंतर्मन एवं विचार में सच्ची श्रद्धा नहीं होगी, तब तक प्रभु की कृपा प्राप्त नहीं हो सकती। भक्ति ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण भाव है। मनुष्य की प्रभु के प्रति जैसी श्रद्धा होती है, उसी के अनुसार भक्त को प्रभु की कृपा प्राप्त होती है।
वहीं कथावाचक रामहेतु ने भंडारे के प्रसाद का भी वर्णन किया। उन्होंने कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है। पहला प्र का अर्थ प्रभु, दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन। जिसे हम सब प्रसाद कहते हैं। हर कथा या अनुष्ठान का तत्वसार होता है जो मन बुद्धि व चित को निर्मल कर देता है। मनुष्य शरीर भी भगवान का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसाद है। जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का ही अपमान होता है। भगवान का लगाए गए भोग का बचा हुआ शेष भाग मनुष्यों के लिए प्रसाद बन जाता है।
इस मौके पर श्रीमद भागवत कथा के आयोजक पूर्व प्रधान ओमकार यादव (कन्हैया जी), रामलाल यादव, लल्लू वर्मा, गोकुल वर्मा, ओमप्रकाश, भानुप्रताप, मनोज, प्रदीप कुमार यादव, ज्ञान सिंह यादव, गजेंदरनाथ वर्मा, पुजारी शिवकुमार वर्मा प्रधान बांसा रामसिंह यादव, प्रधान धरौली उमाकांत राव, अनिल वर्माा, रोहित, अजय, अमरेश, इन्द्रसेन, राकेश, अवधेश लाइनमैन आदि लोग मौजूद रहे।
इसके पूर्भंव श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन कथावाचक रामहेतु ने भक्ति की अपार महिमा का बड़े ही मार्मिक ढ़ंग से वर्णन करते हुए बताया कि भक्ति में बड़ी शक्ति होती है। भक्ति अमूल्य निधि है, जिसमें भक्त और भगवान एक दूसरे के करीब आ जाते हैं। इसके बिना ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि जब तक भक्त के अंतर्मन एवं विचार में सच्ची श्रद्धा नहीं होगी, तब तक प्रभु की कृपा प्राप्त नहीं हो सकती। भक्ति ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण भाव है। मनुष्य की प्रभु के प्रति जैसी श्रद्धा होती है, उसी के अनुसार भक्त को प्रभु की कृपा प्राप्त होती है।
वहीं कथावाचक रामहेतु ने भंडारे के प्रसाद का भी वर्णन किया। उन्होंने कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है। पहला प्र का अर्थ प्रभु, दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन। जिसे हम सब प्रसाद कहते हैं। हर कथा या अनुष्ठान का तत्वसार होता है जो मन बुद्धि व चित को निर्मल कर देता है। मनुष्य शरीर भी भगवान का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसाद है। जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का ही अपमान होता है। भगवान का लगाए गए भोग का बचा हुआ शेष भाग मनुष्यों के लिए प्रसाद बन जाता है।
इस मौके पर श्रीमद भागवत कथा के आयोजक पूर्व प्रधान ओमकार यादव (कन्हैया जी), रामलाल यादव, लल्लू वर्मा, गोकुल वर्मा, ओमप्रकाश, भानुप्रताप, मनोज, प्रदीप कुमार यादव, ज्ञान सिंह यादव, गजेंदरनाथ वर्मा, पुजारी शिवकुमार वर्मा प्रधान बांसा रामसिंह यादव, प्रधान धरौली उमाकांत राव, अनिल वर्माा, रोहित, अजय, अमरेश, इन्द्रसेन, राकेश, अवधेश लाइनमैन आदि लोग मौजूद रहे।
Author: cnindia
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