बाराबंकी -शिक्षा विभाग की लापरवाही से टीचरों की बल्ले बल्ले बच्चे नहीं लिख पाते हे इमला आपको बता दें कि हर व्यक्ति चाहता है कि हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा तालीम दें गौरतालाप हे कि जहां सरकार करोड़ों रुपए को खर्चे करने के बावजूद सरकारी विद्यालय के बच्चे कमजोर नजर आते हैं पढ़ाई में जिससे बच्चों के मां-बाप का ध्यान प्राइवेट स्कूल पर जाता है आखिर ध्यान देने वाली बात यह है सरकारी विद्यालय के टीचरों की सैलरी 30 से 50000 होती है अगर उसे विद्यालय के बच्चे पढ़ाई में कमजोर नजर आते हैं तो फिर यह क्या बच्चों की कमजोरी है या फिर टीचरों की लापरवाही इसी बात से बच्चों के परिवार वाले ना कि सरकारी विद्यालय से भरोसा छोड़कर प्राइवेट स्कूल में पैसा देखकर अपने बच्चों का भविष्य बनाने को सोचते हे
वहीं अगर सूत्रों की बात माने तो जनप्रतिनिधि कभी किसी सरकारी स्कूल का जायजा नहीं लेते वहीं अगर जिम्मेदार अधिकारियों की बात करी जाए तो फिर वह चाहे बाराबंकी जिला अधिकारी हो या फिर बेसिक शिक्षा अधिकारी कभी किसी सरकारी विद्यालय का निरीक्षण नहीं करते जल्दी जबकि लोगों की बात माने तो होना यह चाहिए जिम्मेदार अधिकारी हर महीने एक बार निरीक्षण हर विद्यालय का जरूर करें ताकि सरकारी विद्यालय के टीचरों पर अपनी जिम्मेदारी के साथ बच्चों को पढ़ाने में ही ध्यान लगे ना कि अपने निजी काम में
सरकारी विद्यालय के टीचर अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ाते हे जबकि उनका खुद भरोसा नहीं है कि सरकारी विद्यालय में शिक्षा अच्छी दी जाती हे ऐसे में फिर आम जनता को कैसे भरोसा होगा सरकारी विद्यालय पर जिले में 2626 परिषदीय स्कूलों में वर्तमान में करीब 2.85 लाख बच्चे पंजीकृत है और उन्हे पढ़ाने के लिए आठ हजार से अधिक शिक्षक शिक्षिकाएं हैं। कायाकल्प के तहत स्कूलों में बेहतर व्यवस्थाओं पर बीते पांच साल में करोड़ों खर्च हो चुके है। लेकिन जिले के परिषदीय स्कूलों में बच्चों की हाजिरी नहीं बढ़ रही हे पिछले साल तो जिले पर सबसे कम उपस्थिति का कलंक भी लग चुका है।
75 जिलों में बाराबंकी सबसे आखिरी पायदान पर रहा था। इसके बाद 400 से अधिक शिक्षकों का वेतन रोका गया था। स्कूलों में व्यवस्था सुधारने व निपुण भारत अभियान को लेकर करीब 70 एआरपी भी तैनात किए गए हैं। जिनका काम स्कूलों का भ्रमण करना है। इनमें तीन राज्य स्तरीय सदस्य है। इनके वेतन पर हर माह 45 से 50 लाख रुपये खर्च होते हैं। लेकिन इसके बावजूद स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।