सन् 1930 से लेकर 1932 तक स्वतंत्रता संग्रामों में सत्याग्रह एवं आश्रम व ठहराव की व्यव्यस्था में इनका अहम योगदान था। इसकी संगठम शक्ति बहुत हि प्रशंसनीय थी। जनपद के बहुत से अंचलों में इन्होने पहुंचकर अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आंदोलनो को नया जीवन प्रदान किया। सन 1930 में महात्मा गांधी द्वारा नमक कानून तोडो का अलीगढ जनपद में भी काफी प्रभाव् रहा जिसमे जमुना प्रसाद पाठक को गिरफ्तार का पूरे ढाई माह का कारावास की सजा हुई। 15 फरवरी 1932 को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा हुए भीषण नरसंहार के लिए जाना जाता है। आज़ादी के दीवाने 34 वीरों ने तारापुर थाना भवन पर तिरंगा फहाराने के संकल्प को पूरा करने के लिए सीने पर गोलियां खायी थीं और वीरगति को प्राप्त हुए। जिसके बाद अलीगढ में भी हलचल तेज् हो गई जिसके बाद पुलिस ने पूरे शहर में नाकाबंदी कर दी थी एवं रैली या आंदोलन करने वालो को कठोर से कठोर सजा दी जा रही थी जिसमे जमुना प्रसाद पाठक को भी 3 माह की कारावास सजा झेलनी पड़ी। स्वर्गीय जमुना प्रसाद पाठक के इकलौते पुत्र आज़ाद प्रसाद पाठक का कहना है की इंदिरा गांधी द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानीयो के घर वालो को ताम्र पत्र तो मिल गए लेकिन् अभी भी हम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के घर के लोग सरकारी सुविधाओं से वंचित है।