शक्तिपीठ माता वन देवी की शारदीय नवरात्रि में हो रही विशेष पूजा योगी सरकार से मंदिर के रास्ते और सौंदर्यीकरण के लिए ग्रामीणों की है मांग
बाराबंकी- जिला मुख्यालय से महज 25 किलोमीटर दूर पूरब लखनऊ – अयोध्या राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित अहमदपुर टोल प्लाजा से 02 किमी उत्तर पूरे अमेठिया मुख्य मार्ग में अवस्थित जिले की ऐतिहासिक मां वनदेवी या वन तपस्वी देवी दुर्गास्थान आम जनमानस में असीम आस्था व विश्वास का केंद्र है।
बतातें चलें कि मां वनदेवी का ऐतहासिक बंदिर जागृत देवी मां मदिर के रूप में विख्यात है। यहां स्थापित मां वनदेवी दुर्गा को सिद्धपीठ के रूप में माना जाता है। आसपास के ग्रामीणों के साथ बाहर के भी माता के भक्त गण अक्सर पूजा-अर्चना करने के लिए यहां आते हैं।
हालांकि दुर्गा पूजा के मौके पर यहां विशेष तौर पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। श्रद्धालुओं का मानना है कि जो भक्त यहां सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने आते हैं, उनकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है। सोमवार व शुक्रवार को पूजा की विशेष महत्ता मानी जाती है। मंदिर परिसर में नीम, पीपल, बरगद, अकोहर आदि के औषधीय वृक्ष भी लगे है।
गांव के बुजुर्ग भक्त बृजराज सिंह अमेठिया (68) बताते हैं कि यह मंदिर गौड़ वंश (अमेठिया) के रौनीत(वर्तमान में बाराबंकी के हैदरगढ़ में रौनी के नाम से) स्टेट के राजा भगवान बख्श सिंह के अनुज भाई सरदार सिंह के समय से ही इस मंदिर में पूजा होती आ रही। जिसका इतिहास लगभग 350 वर्षो पुराना है। सरदार सिंह ने ही इस गांव को बसाया था चूंकि रौनीत (रौनी) अमेठी जिले के करीब है और वहां गौड़ को अमेठिया (क्षत्रिय वंश) के नाम से जाना जाता है। इसीलिए इस गांव का नाम पूरे अमेठिया पड़ा। इस मंदिर के पूर्व में एक बड़ा और दिव्य जल स्रोत है, जहां से अविरल जल धारा बहते हुए कल्याणी नदी में समाहित हो जाती है। मंदिर प्रांगण में इस स्थान को माँ जलाहली देवी का दर्जा दिया गया। यहां का मनोरम वातावरण और एकांत दृश्य देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।
फिलहाल ग्रामीण वासियों ने गांव से यहां के लिए पक्के रास्ते और पर्यटन विभाग से सौंदर्यीकरण कराए जाने को लेकर काफी दिनों से मांग कर रही है। इन दिनों शारदीय नवरात्रि में नवमी के दिन गांव के लोग एकत्रित होकर माता वन देवी की पूजा – अर्चना करते है।