सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ अनुबंध के उल्लंघन भर से आपराधिक मुकदमा चलाने का मामला नहीं बनता, इसके लिए लेनदेन की बिल्कुल शुरुआत से ही बेईमानी का इरादा प्रदर्शित करना होगा। जस्टिस एएस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि सिर्फ वादा निभाने की विफलता का आरोप लगाना आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए कीं। हाई कोर्ट ने जमीन बिक्री के एक मामले में एक व्यक्ति के विरुद्ध आइपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), धारा 120बी (आपराधिक साजिश) और धारा 506 (धमकाना) के तहत दर्ज एफआइआर को रद करने से इन्कार कर दिया था। शीर्ष अदालत सरबजीत कौर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा, ‘आपराधिक अदालतों का इस्तेमाल बदला लेने या दीवानी विवादों को निपटाने के लिए पक्षकारों पर दबाव बनाने के लिए नहीं होना चाहिए। जब भी आपराधिक मामले के लिए जरूरी तथ्य होंगे तो आपराधिक अदालतों को संज्ञान लेना होता है