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जिंदगी में आशा और निराशा ,अपेक्षा और उपेक्षा,जिंदगी में कभी कभी चिंतन को बदल देती है।

ठोकर शोभित चिंतन को जाग्रत कर देती है,वजह विनम्रता जरूरी भी है,विनम्रता आभूषण है व्यक्तित्व का।
अधिकांश होता है यह हैं कि विनम्रता और आदर के चक्कर मे हम अपनी ही उपेक्षा करने लगते है, आकक्षा दूसरे की बढ़ जाती है।
हम खुद गुम हो जाते है।
इसलिए कभी कभी नजरंदाज कर देना उपेक्षा को बर्दाश्त न करना किसी की आकांशा को पूरा न होने देना खुद के लिए आवश्यक हो जाता है।
कम से कम यहीं जरूरी भी है।
बहुत ज्यादा अपनी पर्सेनालिटी को दूसरो कोदेखकर नही बनाना चाहिए हमे अपनी धार में चलना हिश्रेयस्कर होता है।।
चार लाइनों से शोभित पोस्ट बिराम।
क्यों अभिमानी सागर के घर,मैं प्रणाम करने को जाऊं।जब तृष्णा ही शांत न हो तो क्यो खारे जल के गुण गाऊं।।
शोभित पोस्ट एक अन्य शेर से बिराम।

 

cnindia
Author: cnindia

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