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याद करिए याद है 7 अगस्त 1990 को क्या हुआ था? एक ओबीसी चिन्तक का कष्ट

क्षमा करिए ओबीसी को मैं मूर्ख ही नहीं कुछ और भी कहना चाहता हूं! नाराज मत होना इस लिए बिना शर्त पहले ही क्षमा मांग लिया है! जरा याद करिए याद है 7 अगस्त 1990 को क्या हुआ था? बताता हूं पूज्यनीय यशकायी श्रद्धेय विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार द्वारा मण्डल आयोग की सिफारिशें लागू करने की घोषणा कर दी गयी थी! जनता दल के सत्ता में सहयोगी पार्टी भाजपा ने इस निर्णय का मुखर विरोध किया! अगले दिनों में इसके विरोध में डीयू, बीएचयू, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय सहित 22 विश्वविद्यालयों के सवर्ण छात्र सड़कों पर उतर आये! अनेक शासकीय सम्पत्तियों में तोड़ फोड़ व आगजनी की गयी! क्योंकि भाजपा व सवर्ण नेताओं को 65% ओबीसी को सत्ता में 27% की भागीदारी देना भी स्वीकार नहीं था। जैसा कि यदि जरा भी बुद्धि लगाओगे तो समझ में आयेगा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सवर्णों द्वारा शासकीय एवं सार्वजनिक उपक्रमों में साक्षात्कार के बल पर अघोषित आरक्षण चलाया गया। मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के विरोध में चलाया गया आन्दोलन स्वतंत्र भारत का जेपी आन्दोलन के अलावा सबसे बड़ा आन्दोलन था! परन्तु वीपी सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार के सामाजिक न्याय की दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण पिछड़ों को न्याय मिला। देश की वर्तमान ओबीसी का फर्जी चोला ओढ़े हुए मोदी सरकार ने पिछड़ों के विरुद्ध जिस कूटनीतिक चाल से उनकी जड़ें खोद डालीं व आगे भी खोद रही है, उसे 75% ओबीसी समझ ही नहीं पा रहा है! वह राम राज्य ला रहा है जिसमें उसे शिक्षा ग्रहण करने यहां तक कि जप तप करने पर प्राणों की बलि देनी पड़ती थी! वह राम मन्दिर बनने से खुश, धारा 370 हटने से खुश, कांवड़, परिक्रमा, आरती, दीपोत्सव, मन्दिरों के कॉरीडोर निर्माण, मुश्लिमों के मनोबल टूटने से खुश, नारा हर हर मोदी घर घर मोदी एक मोदी ने तो तुम्हें 50 साल पीछे कर दिया आगे देखो होता क्या है? पहले सुप्रीम कोर्ट से आरक्षण पर फैसला यदि आरक्षित वर्ग में आवेदन है तो 27% आरक्षित सीट में ही सीट मिलेगी चाहें आप टापर हों सीट आरक्षित घेर लेंगे, मार्जिन के अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के दौरान 40 से 50% अंक देकर बाहर कर ही दिया जायेगा। आरक्षित वर्गों के लिए क्वालीफाइंग कट आफ भी तय यदि सभी पद नहीं भरे तो रिक्त रह गये पद सामान्य श्रेणी में जोड़ दिये जायेंगे, अब कोई बैकलॉग भर्ती नहीं होगी। सरकार द्वारा संसद में आर्थिक पिछड़े के नाम पर 12% सवर्ण जनसंख्या के लिए 10% पद आरक्षित जिनके लिए कोई क्वालीफाइंग मेरिट नहीं, जिसके कारण उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में 3 अंक पाकर ई डब्ल्यू एस सवर्ण अभ्यर्थी चयनित, उत्तराखण्ड में PCS J में 2020 में 30 अंक पाने वाले जज बने। आज हर परीक्षा में ओबीसी की मेरिट सामान्य से अधिक जा रही है। निजीकरण की राह पर चलकर पिछड़ों की नौकरी से छुट्टी तय कर दी गयी है। आश्चर्य होता है कि 12% जनसंख्या के लिए 10% आरक्षण के निर्णय पर संसद में दो चार नेताओं के विरोध के अलावा कोई शोर शराबा नहीं, कोई सड़कों पर नहीं उतर सका। आर्थिक पिछड़ेपन की आय सीमा ओबीसी के क्रीमी लेयर के बराबर यहां तक कि उत्तर प्रदेश के पूर्व बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई इस कैटेगरी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर चयनित, शिक्षक भर्ती 69000 में गुप्ता एवं तिवारी ओबीसी आरक्षण के अन्दर चयनित तथा कार्यरत कितना अन्धेर है लेकिन हम अन्ध भक्त बने हुए हैं। सोचनीय है कि आर्थिक पिछड़े आरक्षण के अंर्तगत सभी वर्गों के अभ्यर्थियों को आरक्षण क्यों नहीं दिया गया क्या यह भेदभाव नहीं है? सरकार द्वारा लैट्रल इंट्री पर संयुक्त सचिव स्तर पर IAS में सीधी साक्षात्कार करके की जाने वाली भर्ती के विज्ञापन में एस सी, एस टी, ओबीसी आवेदन के पात्र नहीं लिखा गया है! ऐसा करके हमें संविधान में दिया गया अवसर की समानता के अधिकार से वंचित किया गया है, जो हमारे मूल अधिकारों का हनन है, और हम मोदी के गुणगान कर रहे हैं।वर्तमान भाजपा सरकार तानाशाही पर उतर आई है, यदि अब भी ओबीसी भाजपा को वोट देता है तो हम उसे कुलघाती ही कहेंगे जिसे आने वाली पीढ़ियां माफ नहीं करेंगी।

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Author: cnindia

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