अब कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी के भी बगावती तेवर। लेकिन सचिन पायलट अभी कांग्रेस के साथ खड़े हैं।
गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में खलबली मची हुई है। कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार के किसी सदस्य की अभी प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन गांधी परिवार की ओर से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मोर्चा संभाल रखा है। आजाद ने जिस तीखी भाषा में गांधी परिवार पर हमला किया है, उसी तीखी भाषा में गहलोत ने जवाब दिया है। राहुल गांधी ने पहले ही कह दिया है कि मोदी सरकार से नहीं डरने वाले ही मेरे साथ हैं, जो डरते हैं, वे कांग्रेस छोड़ कर चले जाएं। राजनीति में निडर होकर काम करना अच्छी बात है, लेकिन सवाल उठता है कि जब कांग्रेस पार्टी संकट के दौर से गुजर रही है, तब राहुल गांधी या अशोक गहलोत कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालने से क्यों डर रहे हैं? अध्यक्ष पद संभालने के लिए राहुल गांधी से बार बार आग्रह किया जा रहा है, लेकिन राहुल तैयार क्यों हो रहे हैं। राहुल की जिद के चलते सोनिया गांधी ने गहलोत से अध्यक्ष पद स्वीकारने की बात कही है, लेकिन गहलोत भी इंकार कर रहे हैं। सवाल उठता है कि जब राहुल और गहलोत निडरता की बात करते हैं तो फिर अध्यक्ष पद क्यों नहीं संभालते? कांग्रेस में इन दिनों जो भगदड़ मच रही है, इसका एक प्रमुख कारण पार्टी का स्थायी अध्यक्ष भी नहीं होना है। 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तब उनकी माता जी सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया गया। तभी से राहुल गांधी से पुन: अध्यक्ष पद संभालने का आग्रह किया जा रहा है। लेकिन न तो राहुल और न गहलोत कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालने को राजी है। सोनिया गांधी भले ही कांग्रेस की अंतिम अध्यक्ष हों, लेकिन सारे फैसले राहुल गांधी और अशोक गहलोत लेते हैं। ये दोनों नेता कांग्रेस को अपने इशारे पर तो चलाना चाहते हैं, लेकिन अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते। यही वजह है कि कांग्रेस में संवादहीनता बन गई है। यदि राहुल या गहलोत में से एक भी अध्यक्ष पद स्वीकार कर ले तो कांग्रेस में भगदड़ रुक सकती है। सवाल गांधी परिवार की चापलूसी का नहीं है, असल बात कांग्रेस को बचाने की है। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का रहना जरूरी है।
अब तिवारी के तेवर:
गुलाम नबी आजाद के बाद अब पंजाब से लोकसभा सांसद मनीष तिवारी के बगावती तेवर सामने आए हैं। तिवारी ने कहा कि दो वर्ष पहले कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा था। यह पत्र संगठन में स्थायी अध्यक्ष नियुक्त करने और संगठन को मजबूत करने से संबंधित था। लेकिन हमारे इस पत्र को गंभीरता से नहीं लिया गया। पिछले दो वर्षों में जिन राज्यों में चुनाव हुए, उन सभी में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस की हालत अब चिंताजनक हो गई है। नेताओं के धैर्य की परीक्षा नहीं ली जानी चाहिए। तिवारी के तेवर बताते हैं कि वे भी कांग्रेस से आजाद हो सकते हैं। जब पार्टी के सांसद ही हालात चिंताजनक मान रहे हैं, तब कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
पायलट कांग्रेस के साथ:
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत अगस्त 2019 के सियासी संकट के लिए भले ही आज भी सचिन पायलट को दोषी मानते हो, लेकिन पायलट अभी कांग्रेस के साथ खड़े हैं। गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे पर पायलट का कहना है कि आजाद के सारे आरोप बेबुनियाद हैं। आजाद ने इस्तीफा तब दिया है, जब 7 सितंबर को कांग्रेस दिल्ली में महंगाई और बेरोजगारी के विरोध में बड़ी रैली करने जा रही है। पायलट के ताजा बयान से जाहिर है कि वे कांग्रेस में ही बने रहेंगे, भले ही अशोक गहलोत उन्हें बार बार अपमानित करते रहे।