इस अवसर पर धार्मिक, और सामाजिक क्षेत्र की अनेक महान विभूतियां उपस्थित थीं। स्थापना के समय महामंत्री का दायित्व संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री शिवराम शंकर (दादासाहब) आप्टे ने संभाला, वहां अध्यक्ष के लिए सबने सर्वसम्मति से मैसूर राज्य के पूर्व और अंतिम महाराज श्री जयचामराज वाडियार का नाम स्वीकृत किया।श्री जयचामराज वाडियार का जन्म 18 जुलाई, 1919 को मैसूर (वर्तमान कर्नाटक) के राजपरिवार में हुआ था। वे युवराज कान्तिराव नरसिंहराजा वाडियार और युवरानी केम्पु चेलुवाजा अम्मानी के एकमात्र पुत्र थे। 1938 में उन्होंने मैसूर वि.वि. से प्रथम श्रेणी में भी सर्वप्रथम रहकर, पांच स्वर्ण पदकों सहित स्नातक की उपाधि ली। फिर उन्होंने शासन-प्रशासन का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया।1939 में अपने पिता तथा 1940 में अपने चाचा श्री नाल्वदी कृष्णराज वाडियार के निधन के बाद आठ सितम्बर, 1940 को वे राजा बने। भारत के एकीकरण के प्रबल समर्थक श्री वाडियार ने 1947 में स्वाधीनता प्राप्त होते ही अपने राज्य के भारत में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे।संविधान बनते ही 26 जनवरी, 1950 को मैसूर रियासत भारतीय गणराज्य में विलीन हो गयी। इसके बाद भी वे मैसूर के राजप्रमुख बने रहे। 1956 में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के समय निकटवर्ती मद्रास और हैदराबाद राज्यों के कन्नड़भाषी क्षेत्रों को लेकर मैसूर राज्य बनाया गया, जो अब कर्नाटक कहलाता है। श्री वाडियार 1956 से 1964 तक इसके राज्यपाल रहे। फिर वे दो वर्ष तक तमिलनाडु के भी राज्यपाल बनाये गये।