समय के साथ लाहौरी, काबुली और लाल दरवाज़े के साथ-साथ खिज़री भी ग़ायब हो गया। शाहजहां ने इसी दरवाज़े से पहली दफ़ा लाल क़िले में प्रवेश किया था। अंग्रेज़ों ने जब दिल्ली फ़तह किया, तो बहादुर शाह जफ़र रात के पहर इसी दरवाज़े से बाहर निकले थे।लाल क़िला और सलीमगढ़ क़िला के बीचो-बीच यमुना बहती थी। इसलिए पुल बनाया गया। दुनिया में कई जगहों पर आज पुल मौजूद हैं, लेकिन नदियां ग़ायब। जब आप लोदी गार्डन जाते हैं, तो वहां भी एक पुलिया है। उस पुलिया के नीचे कभी नदी बहा करती थी। दिल्ली में छोटी-मोटी दर्जनों नदियां थीं, जो मिट गईं।पहले के ज़माने में सुरक्षा के लिहाज़ से क़िले आम तौर पर नदी किनारे या पहाड़ों पर बनाए जाते थे। लाल क़िला के लिए यमुना एक सुरक्षा थी। Sohail सर ने एक्सप्रेस वाली स्टोरी में बताया है कि 18वीं सदी में मोहम्मद शाह “रंगीला” के समय यमुना क़िले से दूर जाने लगी और धीरे-धीरे वहां पहुंच गई, जहां वह आज है।अंग्रेज़ों ने जब कलकत्ते से राजधानी को दिल्ली लाने का फ़ैसला किया, तो उस समय किंग्सवे कैंप और सिविल लाइंस वाले इलाक़े को चुना गया था, लेकिन वह पूरा इलाक़ा बाढ़ में डूबा हुआ था। इसलिए, रायसीना हिल पर निर्माण शुरू हुआ। बाढ़ के पानी से बचने के लिए ही ऊंची जगह चुनी गई।जबसे रिकॉर्ड मेनटेन होना शुरू हुआ है, तबसे दिल्ली ने ऐसी बाढ़ नहीं देखी। 1978 में इसके क़रीब तक जलस्तर पहुंचा था। तब, यमुना की पेटी खाली थी। इतने निर्माण नहीं हुए थे। न अक्षरधाम मंदिर था, न कॉमनवेल्थ विलेज, न दिल्ली सचिवालय और न इंदिरा गांधी स्टेडियम। सरकारी वैधता के साथ, सब यमुना की पेटी में अवैध रूप से बने।आपको याद ही होगा कि 2017 में रविशंकर ने इसी यमुना की पेटी में 3 दिनों का एक जलसा किया था। एनजीटी ने नियमों के उल्लंघन में 5 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना ठोका। बाद में रिपोर्ट आई, तो कहा गया कि जो नुक़सान हुआ है, उसकी भरपाई में 10 साल लग जाएंगे और इसमें सरकार के ऊपर 42 करोड़ रुपए का ख़र्च बैठेगा। लेकिन अपने वाले “रंगीले” साहब उस कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंच गए थे। अब, मोहम्मद शाह रंगीला के समय वापस पीछे हटी यमुना इस बार वापस लाल क़िले पर दस्तक देने पहुंच गई है। किस रंगीले को देखकर लौटी है इस बार?