राजस्थान में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस ने अपनी चुनाव संचालन समिति की भी घोषणा कर दी है। आमतौर पर चुनाव समिति का अध्यक्ष ऐसे नेता को बनाया जाता है जो स्वयं चुनाव न लड़े और जिसे चुनाव संचालन का अनुभव हो, लेकिन राजस्थान में मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को ही चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाया है। समिति के जो 28 सदस्य होंगे उनमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट भी शामिल हैं। डोटासरा को चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद अब यह बात कोई मायने नहीं रखती है कि समिति में पायलट गुट के कितने सदस्य बने हैं। कांग्रेस हाईकमान ने अब स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव की रणनीति सीएम गहलोत ही बनाएंगे। डोटासरा को गहलोत का ही कट्टर समर्थक माना जाता है। जुलाई 2020 में सियासी संकट के समय पायलट को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के पद से बर्खास्त कर डोटासरा को ही अध्यक्ष बनाया गया। संगठन और सरकार ने फिलहाल पायलट की कोई भूमिका देखने को नहीं मिल रही है। गत माह दिल्ली में पायलट और गहलोत की उपस्थिति में हाईकमान की जो बैठक हुई उसके बाद जयपुर में पायलट और गहलोत की कोई मुलाकात नहीं हुई है। पिछले दिनों सीएम गहलोत के दोनों पैर के अंगूठों में चोट लगने के बाद भी पायलट ने गहलोत से मुलाकात नहीं की। सिर्फ ट्विटर पर शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की। अब जब चुनाव समिति की घोषणा ही हो गई है, तब पायलट को यह बताना चाहिए कि गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार के रिपीट होने की कितने प्रतिशत संभावना है। हाईकमान के हस्तक्षेप होने के बाद पायलट ने कहा था कि यदि सभी नेता मिलकर चुनाव लड़ेंगे तो कांग्रेस की जीत होगी। हालांकि संगठन के दो कार्यक्रमों में पायलट ने जयपुर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। लेकिन चुनाव तैयारियों में फिलहाल पायलट की भूमिका देखने को नहीं मिली है। अपनी जन संघर्ष यात्रा में पायलट ने जो तीन मुद्दे उठाए थे, उन पर भी अभी सीएम गहलोत की ओर से कोई एक्शन नहीं लिया गया है। राजस्थान लोक सेवा आयोग में अभी भी तीन पद खाली पड़े हैं और आयोग के पेपर लीक होने के मामले लगातार हो रहे हैं। इसी प्रकार पेपर लीक से प्रभावित अभ्यर्थियों को मुआवजे को लेकर कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है। चुनाव संचालन समिति का सदस्य बनकर पायलट अपने कितने समर्थकों को टिकट दिलवा पाते हैं यह आने वाला समय ही बताएगा। गत बार विधानसभा चुनाव की घोषणा 6 अक्टूबर 2018 हो गई थी। इस लिहाज से अब विधानसभा चुनाव में मात्र 70 दिन शेष रह गए हैं। जानकार सूत्रों का मानना है कि पायलट विधानसभा चुनाव के परिणाम तक चुप रहेंगे भले ही कांग्रेस में उनकी स्थिति कैसी भी रहे। पायलट के कांग्रेस से बाहर निकलने की फिलहाल कोई संभावना नहीं है। पायलट भी इस तथ्य को जानते है कि अशोक गहलोत के रहते हुए कांग्रेस सरकार कभी रिपीट नहीं हुई है, लेकिन कांग्रेस की राजनीति में यह पहला अवसर है, जब गहलोत के अकेले दम पर ही चुनाव लड़ा जा रहा है। 2018 के चुनाव में सचिन पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका थी।