हनुमानजी ने गुरु की तलाश प्रारम्भ की। गुरु की खोज करते हुए उन्हें पता चला की भगवान सूर्य नारायण सभी प्रकार के विद्याओ को जानते है और प्रदान करने में सक्षम है। अतः उन्होंने सूर्य नारायण को ही अपना गुरु बनाने का निश्चय किया।हनुमानजी द्वारा सूर्य से गुरु बनाने के लिए प्रार्थना:- हनुमानजी ने जैसे ही निश्चय किया की सूर्य को अपना गुरु बनाकर विद्या ग्रहण करना है तत्काल वायु वेग से सूर्य के पास पहुच गए और वहा जा कर सूर्य से प्रार्थना करने लगे की उन्हें शिष्य रूप में स्वीकार करें।सूर्य ने सोचा कि यह बालक इतना बलशाली है की कुछ समय पूर्व मुझे ही निगल गया था कही इसे शिष्य बना लिया तो पता नहीं और क्या क्या उत्पात मचायेगा। ऐसा सोच कर पहले उन्होंने मना किया। फिर हनुमानजी ने पुनः आग्रह किया तब सूर्य ने अपनी दूसरी समस्या गिना दी कि मैै कभी स्थिर नहीं रहता निरंतर मेरी एक निर्धारित गति है जिस पर मुझे चलना पड़ता है, यदि मै तुम्हे विद्या प्रदान करने लगा तो मुझे किसी स्थान विशेष पर जाकर रुकना होगा और फिर ऐसा करने से प्रकृति का नियम बिगड़ जायगा और प्रकृति का संतुलन बिगड़ जायगा।हनुमानजी द्वारा सूर्य के समस्या का समाधान:- हनुमानजी बहुत चतुर थे उन्होंने कहा की हे सूर्यदेव आपको अपनी गति रोकने की आवश्यकता नहीं है आप अपने नियत चाल से सम्पूर्ण सृष्टि का संतुलन बनाये रखिये। मै आप के साथ साथ आपके ही सामान वेग से चलूँगा आप मुझ सारी विद्याएँ दे देना। ऐसे में आप को रुकना भी नहीं पडेगा और न ही प्रकृति का संतुलन बिगड़ेगा। भगवान् सूर्य हनुमानजी की इस बात से बहुत प्रभावित हुए और प्रसन्न हो कर उन्हें अपना शिष्य बना लिया।हनुमानजी की अद्भुद पाठशाला:- जब हनुमानजी सूर्य के शिष्य बने तब हनुमानजी ने पहले तो अपने स्वरुप को विराट किया। उसके बाद जिस वेग से सूर्य अपने रथ पर चल रहे थे उसी वेग से सूर्य के समानांतर चलने लगे। सूर्य ने उन्हें एक एक करके सभी विद्याएँ देना प्रारम्भ किया।हनुमानजी की शिक्षा में व्यवधान:- पराशर सहिंता के अनुसार सूर्य को हनुमानजी को 9 प्रकार की विद्या प्रदान करनी थी परंतु उन 9 विद्याओ में 5 विद्याएँ तो हनुमानजी को दे दी पर 4 विद्याएँ ऐसी थी जो केवल विवाहितों को ही प्रदान की जाती है। सूर्य ने हनुमानजी को आगे की विद्या के लिए विवाह करने को कहा।
हनुमानजी की दुविधा:- हनुमानजी बाल्यकाल से ही ब्रह्मचर्य का पालन करने का व्रत ले चुके थे। अतः विवाह वो कर नहीं सकते थे और यदि विवाह नहीं करते तो आगे की विद्या उन्हें प्राप्त नहीं हो सकती थी। अतः हनुमानजी निराश हो गए और सोच में पड़ गए की इस समस्या का समाधान कैसे निकाला जाए।सूर्य द्वारा हनुमानजी की समस्या का समाधान:- हनुमानजी ने सोचा की गुरु से बड़ा मार्गदर्शक इस संसार में कोई नहीं है अतः चलकर अपने गुरु सूर्य देव से ही समाधान लिया जाए। ऐसा विचार कर हनुमानजी सूर्य के पास आये और अपनी समस्या बता दी। सूर्य देव ने कहा की समस्या तो गंभीर है। एक तरफ विवाह के बिना तुम्हे विद्या प्राप्त नहीं होगी और दूसरी तरफ तुमने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया है। सूर्य देव ने एक युक्ति सुझाई की हनुमान तुम एक काम करो किसी कन्या से विवाह कर लो पर गृहस्थी मत बसाना। तो तुम्हारा ब्रह्मचर्य भी नहीं टूटेगा और तुम विद्या भी प्राप्त कर लेना।हनुमानजी का विवाह के लिए कन्या की खोज:- हनुमानजी अपने गुरु की आज्ञा के अनुसार कन्या की खोज में निकल गए। पर जैसे ही वे अपना यह प्रस्ताव रखते की हम आप से विवाह करेंगे पर गृहस्थी नहीं बसाएंगे तो कन्या या उनके माता पिता विवाह से इनकार कर देते। ऐसे ही कन्या की तलाश में हनुमानजी का बहुत समय नष्ट हो गया अन्त में वे अपने गुरु के पास पुनः इस समस्या के समाधान के लिए पहुचे।हनुमानजी का सूर्य पुत्री सुवर्चला से विवाह प्रस्ताव:- हनुमानजी की विद्या प्राप्ति के प्रति निष्ठा को देख कर सूर्य देव प्रसन्न हो गए और उन्होंने अपनी परम तपस्वी पुत्री सुवर्चला से सारा वृत्तांत बताया और विवाह के लिए प्रस्ताव रखा। सुवर्चला ने जब यह जाना की विवाह उपरान्त गृहस्थी नहीं बसानी है तो वो भी विवाह को तैयार हो गई क्योकि सुवर्चला स्वयं बड़ी तपस्विनी थी अतः उन्हें भी उनके तपस्या में कोई विक्षोभ ना दिखा और वे विवाह को मान गई।हनुमानजी का विवाह:- फिर हनुमानजी और सुवर्चला का विवाह कराया गया। विवाह होते ही हनुमानजी अपने आगे की विद्या प्राप्ति में लग गए और सुवर्चला अपनी तपस्या में लीं हो गई। इस प्रकार हनुमानजी का विवाह तो हुआ पर वे ब्रह्मचारी ही रहे।हनुमानजी की गुरु दक्षिणा:- आगे हनुमानजी ने सूर्य देव से सारी विद्याओ को ग्रहण किया। विद्या प्राप्ति के बाद हनुमानजी ने अपने गुरु सूर्य नारायण से गुरु दक्षिणा के लिए प्रार्थना की। सूर्य देव ने हनुमान की शिष्यता से प्रसन्न हो कर गुरु दक्षिणा में कुछ नहीं लेने की बात कही। परंतु हनुमानजी ने पुनः आग्रह किया तब सूर्य देव को अपने संकटग्रस्त पुत्र सुग्रीव की याद आ गई और हनुमानजी से गुरु दक्षिणा स्वरुप सुग्रीव की रक्षा और उसकी सहायता करने की बात कही। हनुमानजी ने सूर्यदेव की बात सहर्ष स्वीकार की और सुग्रीव की सहायता करने चले गए।इस प्रकार हनुमानजी ने अत्यंत कठिनाइयों का सामना करते हुए अपनी विद्याओ को सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से प्राप्त किया। हनुमानजी सर्व समर्थ है। उनसे कोई भी विद्या अलग नहीं है। वे सभी विद्याओ के दाता है।