www.cnindia.in

Search
Close this search box.

become an author

25/10/2024 8:39 pm

Search
Close this search box.

प्रचीन मंदिर कैलाश महादेव सिकन्दरा आगरा उत्तर प्रदेश एक अनोखा शिव मंदिर जहाँ एकसाथ दो शिवलिंग बिराजमान है

आगरा से 8 किमी दूर सिकंदरा में यमुना किनारे दो शिवलिंग स्थापित हैं। कहते हैं यह शिवलिंग ऋषि जमदग्नि तथा उनके पुत्र महर्षि परशुराम द्वारा स्थापित किया गया था। जमीन की खुदाई में मिले ताम्रपत्र से प्रमाणित हुआ कि यह शिवलिंग त्रेतायुग का है
देवों के देव महादेव शिव शंकर का मंदिर यूं तो सारे देश में मिल जायेंगे पर एक ऐतिहासिक मंदिर है आगरा के जो कि सिकंदर क्षेत्र में स्थित है और इस मंदिर की खास बात ये है की इस मंदिर में दो शिवलिंग विराजमान हैं जोकि पुरे देश में किसी मंदिर नहीं है और इस विशेषता की वजह से भक्त दूर दूर से इन शिवलिंगों के दर्शान के लिए पहुंचते हैं। श्रावण मास में इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है। ये दुनिया का अकेला मंदिर है जहां एक साथ दो शिवलिंगो की पूजा होती है। श्रद्धालु यहाँ शिवलिंगों की पूजा कर शिव सेवा का साक्षात अनुभव करते हैं। मंदिर का इतिहास महर्षि परशुराम से जुड़ा है। कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान परशुराम और उनके पिता ऋषि जयदग्नि ने अपनी तपस्‍या से भगवान शि‍व को प्रभावि‍त कर कैलाश पर्वत से उन्‍हें यहां लाए थे। तभी से यह जुड़वा ज्‍योति‍र्लिंग यहां स्‍थापि‍त हैं। यहां हर सोमवार को भीड़ उमड़ती है और सावन के दौरान तो इतनी भीड़ होती है कि नेशनल हाइवे तक को बंद करना पड़ता है। शहर से करीब 8 किलोमीटर दूर यमुना की तलहटी में कैलाश सिकंदरा क्षेत्र स्थापित है। इस मंदिर को देखकर ही यहाँ का इतिहास महसूस होने लगता है मंदिर के जुड़वा ज्योर्ति‍लिंग के बारे में कहा जाता है कि यह शिवलिंग की स्‍थापना खुद परशुराम और उनके पिता ऋषि जयदग्नि के हाथों की गई थी। इस मंदिर पर एक परिवार की 26वीं पीढ़ी आज भी सेवा में लगी हुई है। ये है इतिहास त्रेता युग में परशुराम और उनके पिता ऋषि जयदग्नि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की आराधना करने गए। उनकी कड़ी तपस्या के चलते भगवान शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। इस पर इन दोनों भक्तों ने उनसे अपने साथ चलने और हमेशा साथ रहने का आशीर्वाद मांग लिया। इसके बाद भगवान शिव ने दोनों को एक-एक शिवलिंग भेंट स्वरुप दिया। जब दोनों पिता-पुत्र अग्रवन में बने अपने आश्रम रेणुका के लिए चले (रेणुकाधाम का अतीत श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित है) तो आश्रम से 4 किलोमीटर पहले ही रात्रि विश्राम को रुके फि‍र सुबह की पहली बेला में हर रोज की तरह नित्यकर्म के लिए गए। इसके बाद ज्योर्ति‍लिंगों की पूजा करने के लिए पहुंचे, तो वहां जुड़वा ज्योर्ति‍लींग वहीं पृथ्वी की जड़ में समा गए।
इन शिवलिंगों को पिता-पुत्र ने काफी उठाने का प्रयास किया, लेकिन उसी समय आकाशवाणी हुई कि अब यह कैलाश धाम माना जाएगा। तब से इस धार्मिक स्थल का नाम कैलाश पड़ गया। जानकार बताते हैं कि इस कैलाश मंदिर की स्थापना तो त्रेता युग में हुई, लेकिन इस मंदिर का जीर्णोद्धार कई बार कई राजाओं ने भी कराया है। वह बताते हैं कि यमुना किनारे कभी परशुराम की मां रेणुका का आश्रम हुआ करता था। उस समय इस जगह ऐसी घटना घटी कि यमुना नदी के किनारे बने स्थान का नाम कैलाश रख दिया गया। इस मंदिर की मान्यता है की जो भक्त पूरी भक्ति निष्ठा और लगन से इस मंदिर में पूजा करते हैं उन पर महादेव बहुत जल्द खुश होते हैं और उनकी हर मनोकामन को पूर्ण करते हैं, साथ ही सावन के महीने में इस मंदिर की मान्यता और अधिक बड जाती है और भारी संख्या में भक्त इस मंदिर की और रुख करते हैं और अपनी पूजा पाठ से महादेव को खुश करने का का प्रयास करते हैं।

cnindia
Author: cnindia

Leave a Comment

विज्ञापन

जरूर पढ़े

नवीनतम

Content Table