(संजय वर्मा ‘‘पंकज’’/सद्दाम राईन)
बाराबंकी। कोतवाली क्षेत्र अंतर्गत स्थित नाका स्टैंड से लेकर पल्हरी टेम्पो स्टैंड की टोकन के नाम पर हो रही जबरन अवैध वसूली का आरोप तमाम ई रिक्शा व सीएनजी रिक्शा चालकों ने परिवार सहित धरना प्रदर्शन करते हुए लगाया। लोन या किराए पर रिक्शा चला बैंक लोन चुकाने के साथ परिवार का भरणपोषण कर रहे तमाम गरीब परिवारों के चालकों की मानें तो जहां सवारियां मिलना सुलभ है वहां इन्हें रुकने नहीं दिया जाता और स्टैंड पर माफियातंत्र में वसूली भाई इन्हें जीने नहीं देता तो संचालन ना हो पाने से निवासियों को भी साधन ना मिल पाने के चलते परेशान होना पड़ता है या अधिक कई गुना मूल्य शहर में ही तमाम जगह आनेजाने पर चुकाना पड़ता है।
अब बस स्टैंड-रेलवे स्टेशन पर अगर ई रिक्शा रूकने नहीं दिया जाएगा तो उन्हें सवारियां कहां से मिलेंगी यह मोटी लाखों रुपए वेतन उठा रहे अधिकारियों की या तो समझ में नहीं आ रहा या समानांतर चल रहीं भ्रष्टाचार की व्यवस्था को पोषित करने में जिम्मेदारों का आमजन की समस्याओं की जगह जिमेदारी स्वयं के अतिरिक्त पोषण तक रामराज्य में शायद निहित होकर रह गई है? ऐसा दर्द तमाम ई रिक्शा व सीएनजी आटो संचालकों का है।
बताते चलें कि शहर में चलने के लिए अब पुलिस से लेकर फर्जी स्टैंड वसूली करने वालो की जबरन वसूली करने का मामला पहले भी सामने आया था। जिसपर पल्हरी स्टैंड को बंद कर दिया गया था। फिर भी कुछ दिन बीतने के बाद ही उसका संचालन होने टैक्सी माफियाओं की पहुंच में या कह लें मिलने वाले भारी सुविधा शुल्क की तरावट में दोबारा आरम्भ हो गया। पीड़ित ई रिक्शा चालक जमील ने बताया की ऑटो पे सवारी लेकर रोड से निकलते हैं तो बड़ेल चैकी के सिपाही व ट्रैफिक पुलिस सवारी उतार देते हैं। इसी तरह सतरिख पर ऑटो चलाने पर चालान कर देते हैं जिससे हाल आमदनी अठन्नी व खर्चा रुपय्या वाले हाल में दो वक्त की रोटी तक मिलने भर के वांदे हो गए हैं। जिसको देख यही विचार आता है कि सरकार गरीबों को गोली मारने का आदेश दे दे तो कम से कम भारी भ्रष्टाचार में घुटघुटकर मरने से बेहतर होगा।
वैसे पीड़ित सूरज, शानू, सूर्या, संजय, अमरकेश, इस्लामुद्दीन, मुन्ना, अंकुश वर्मा, जावेद अली, बाबादीन, अजीत कुमार तुफैल, आदि सैकड़ों ऑटो चालको ने पुलिस अधीक्षक दिनेश कुमार सिंह से प्रार्थना पत्र देकर न्याय की गुहार लगाई है।अब गुहार बढ़ रहे राजसी ठाठबाट में घट रही जिम्मेदारियों की आदत में कहां तक न्याय करती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तय है कि नौकरशाह व्यवस्थाओं को दिन प्रतिदिन और अव्यवहारिक कर एक बड़ी जनक्रांति की ओर समाज को धक्का देते जरूर नजर आ रहे हैं जिसमे दिखावा ज्यादा और जिम्मेदारी निर्वहन शून्य होता जा रहा है।