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सचिन पायलट तो मेरे परमानेंट दोस्त हैं। ढाई वर्ष के थे तब से जानता राजनीति में सार्वजनिक तौर पर इतना झूठ अशोक गहलोत ही बोल सकते हैं।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने प्रतिद्वंदी नेता पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को नकारा, मक्कार, धोखेबाज बेशर्म ही नहीं कहा बल्कि भाजपा से करोड़ों रुपए लेने वाला गद्दार भी कहा। लेकिन अब अशोक गहलोत उन्हीं सचिन पायलट को अपना परमानेंट दोस्त बता रहे हैं। गहलोत का कहना है कि पायलट जब ढाई वर्ष के थे, जब से जानता हंू। मेरा पायलट के साथ कोई विवाद नहीं है। विवाद को मीडिया करवा रहा है। गहलोत ने पायलट को लेकर ऐसी बातें एक इंटरव्यू में कही है। इस इंटरव्यू को सुनने से जाहिर होता है कि राजनीति में इतना झूठ अशोक गहलोत जैसे नेता ही बोल सकते हैं। सवाल उठता है कि जब परमानेंट दोस्ती (सुलह) है तो फिर पायलट के लिए अर्मयादित शब्दों का इस्तेमाल क्यों किया? वर्ष 2020 में पायलट के 18 विधायकों के साथ दिल्ली जाने के प्रकरण में गहलोत ने कहा कि मैंने तो उसी समय कहा दिया था कि भूल जाओ माफ करो, जबकि सब जानते हैं कि पिछले दिनों ही गहलोत ने पायलट और दिल्ली जाने वाले विधायकों पर बीस-बीस करोड़ रुपए लेने का गंभीर आरोप लगाया था। गहलोत का यहां तक कहना था कि विधायकों के पास कुछ पैसा खर्च हो गया हो तो बताए, मैं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से दिलवा दूंगा। गहलोत ही बताएं कि क्या एक स्थायी दोस्त पर ऐसे आरोप लगाए जाते हैं? इसे गांधीवादी की राजनीतिक नैतिकता ही कहा जाएगा कि भाजपा से पैसा लेने वाले को अपना परमानेंट दोस्त बता रहे हैं। राजनीति में झूठ तो बोला जाता है, लेकिन सफाई के साथ। जबकि गहलोत तो बिना किसी शर्म के झूठ बोल रहे हैं। भाजपा से पैसा लेने वाला और परमानेंट सुलह वाला वीडियो यदि अशोक गहलोत स्वयं एक साथ सुने तो उन्हें भी अपना झूठ पकड़ में आ जाएगा। गत वर्ष 25 सितंबर को जयपुर में हुई कांग्रेस विधायक दल की समानांतर बैठक पर भी गहलोत झूठ बोल रहे हैं। गहलोत का कहना है कि कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल के घर पर हुई विधायकों की जानकारी उन्हें नहीं थी, वे तो तनोट माता के दर्शन करने गए थे। समझ में नहीं आता कि गहलोत किसे बेवकूफ बना रहे हैं। 25 सितंबर को कांग्रेस विधायकों की बैठक बुलाने की जिम्मेदारी गहलोत की ही थी, क्योंकि गहलोत ही कांग्रेस विधायक दल के नेता हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने बैठक का स्थल भी मुख्यमंत्री का सरकारी आवास निर्धारित किया था। बैठक में भाग लेेेने के लिए चार पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खडग़े और अजय मकान बैठक स्थल पर पहुंच भी गए। लेकिन अधिकांश विधायक गहलोत वाली बैठक के बजाए शांति धारीवाल वाली बैठक में पहुंच गए। अब अशोक गहलोत कहते हैं कि धारीवाल की बैठक का उन्हें पता ही नहीं चला। इस कथन के बाद गहलोत के मुख्यमंत्री होने पर भी सवाल उठते हैं। गहलोत ऐसे मुख्यमंत्री हुए जिन्हें अपनी ही पार्टी के विधायकों की बगावत के बारे में पता नहीं चला। असल में विधायकों की बगावत गहलोत के इशारे पर ही हुई थी। लेकिन अब गहलोत झूठ बोल रहे हैं। कांग्रेस हाईकमान ने तो समानांतर बैठक करवाने वाले शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेन्द्र राठौड़ को कारण बताओं नोटिस भी जारी किया, लेकिन आरोपियों को गहलोत ही बचा रहे हैं।

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Author: cnindia

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