एंटायर पॉलिटिकल साइंस के ज्ञाता ने अपने जैसे बल बुद्धि वाले चेलों को समझा दिया है कि मणिपुर पर जवाब देना तब जरूरी है जब राजस्थान-छत्तसीगढ़ के मामलों पर जवाब दिया जाए। इसी ज्ञान को एक मंत्री ने संसद में चीख-चीख कर बयान करने की कोशिश की। इससे उन्हीं का मजाक उड़ रहा है ना कोई उनके ज्ञान को मान रहा है ना उनके चीखने से डर रहा है।
आइए देखते हैं मणिपुर कैसे अलग है –
1. मणिपुर की वारदात 4 मई की है जो इंटरनेट बंद रहने और दूसरे कारणों से सार्वजनिक नहीं हुई। दो महीने से भी ज्यादा बाद, जब हुई तब तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया था और सुप्रीम कोर्ट के यह कहते ही कि सरकार कार्रवाई नहीं करेगी तो हम करेंगे, पहले अभियुक्त की गिरफ्तारी की खबर आ गई। जाहिर है, कार्रवाई सरकार की प्राथमिकता में थी ही नहीं।
2. देश में जब अपराधियों, मूर्खों की भरमार है, उन्हें संरक्षण और ईनाम दिये जाने के उदाहरण हैं, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी में शामिल किया जा चुका है तो कोई गिरोह मणिपुर जैसी घटना फिर भले कर दे लेकिन वह मणिपुर जैसा नहीं होगा। क्योंकि उसकी खबर दबेगी नहीं और कार्रवाई करनी ही पड़ेगी। तथा वह लंबे समय तक चलने वाली हिंसक कार्रवाई का हिस्सा नहीं होगा।
3. आप जानते हैं कि मणिपुर में लंबे समय से हिंसा जारी है और उसे रोकने की कोशिश नहीं के बराबर हुई है। और सब तो छोड़िये प्रधानसेवक सह चौकीदार जी ने कई दिनों तक अपील नहीं की और संसद सत्र के पहले, मजबूरी में जब मणिपुर का नाम लिया तो राजस्थान छत्तीसगढ़ को भी जोड़ लिया। जबकि कई अन्य कारणों से वह मणिपुर नहीं हो सकता है इसमें सबसे महत्वपूर्ण है, वहां डबल इंजन की सरकार नहीं है।
कुल मिलाकर, अफराध की कोई भी वारदात मणिपुर की घटना के बराबर नहीं हो सकती है क्योंकि मणिपुर में जो भी होगा या हुआ है वह 3 मई से जारी हिंसा का भाग है और इतने लंबे समय तक हिंसा जारी रहना सरकारी नालायकी या उसकी विशेष योग्यता जो भी हो – सामान्य से अलग है। इतनी सी बात भक्तगण नहीं समझ रहे हैं और अपनी बुद्धि-विवेक का नंगा प्रदर्शन करना जारी रखे हुए हैं। वैसे ही जैसे मणिपुर वाले वीडियो में जो-जो दिखेंगे सब देर-सबेर नपेंगे।