बाराबंकी। पसमांदा मुस्लिम समाज मे बढ़ती जागरूकता और पीएम मोदी की इस समाज के प्रति फिक्र ने विपक्ष के खासकर मुस्लिम समाज के कथित खैरख्वाहों के भी होश उड़ा दिए हैं। यही वजह है कि अब यह लोग पसमांदा समाज के वजूद पर ही उंगली उठा रहे हैं। यह केवल अज्ञानता है और कुछ नही। यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसीम राईन ने अपने बयान में कही। हाल ही में मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना फिरंगी महली द्वारा पसमांदा समाज को लेकर दिये गए बयान पर गहरी आपत्ति जताते हुए कहा कि मौलाना महली का बयान कि पसमांदा जैसे शब्द का इस्लाम मे कोई मतलब नही, सरासर उनका व्यक्तिगत बयान और सोंच है। इसका सच से कोई लेना देना नही। असल मे वह पसमांदा मुसलमान की पीएम मोदी से बढ़तीं करीबी से घबराए हुए हैं और इस समाज मे बढ़ती जागरूकता ने उन्हें हैरान परेशान कर दिया है।
पसमांदा नेता ने कहा कि अगर मौलाना महली की नजर में सभी मुस्लिम एक हैं तो फिर इस समाज मे सवर्ण और दलित मुस्लिम का दर्जा क्यों है। अशराफ मुसलमान अपने घर की बेटियों का निकाह एक मुस्लिम मानकर दलित पिछड़े या फिर निर्धन परिवार में क्यो नही करता। यह गैरबराबरी क्यो है, यही लोग मुस्लिमो में भेदभाव करते हैं फिर सार्वजनिक मंच पर एक मुस्लिम का ढिढोरा पीटते नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि देश की 85 फीसदी आबादी पर सवालिया निशान उठाना केवल नादानी कही जाएगी। जब तक पसमांदा मुसलमान सपा, कांग्रेस बसपा जैसे दलों की सरकार बनवाता रहा, उनकी दरी बिछाता रहा तब तक इन नेताओं की नजर में सब ठीक था। आज पीएम नरेंद्र मोदी के साथ ही भाजपा ने पसमांदा मुस्लिम समाज का जिक्र किया उसे साथ लेकर चलने की बात कही बस विपक्ष के अलावा चुनिंदा धर्म गुरुओं के पेट मे मरोड़ हो गई। इसकी वजह भी है क्योंकि अगर यह समाज तरक्की की राह पर चला गया, भाजपा के साथ कदमताल कर ली और सरकार में भागीदारी पा ली तो 15 प्रतिशत अशराफ मुसलमानों की दुकान हमेशा के लिए बन्द हो जाएगीं। सिर्फ सत्ता के साथ रहकर मलाई काटते आ रहे अशराफ मुसलमानों की असल समस्या भी यही है। इसीलिए अब वह पसमांदा मुस्लिम समाज के पीछे पड़े हुए हैं। यही समाज जब अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहा था तब यह लोग कोसो दूर तक नही दिखाई दिए।