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सनातन धर्म के कथन और हिन्दुओ का भ्रम :जानिए हिंदुओं के मुख्य भ्रम और उनके निवारण:-

भ्रम :- सारी मानवता एक है हम वसुदेव कुटुम्बकम को मानते हैं और सबका सम्मान करते हैं ।

निवारण :- सारी मानवता एक अवश्य है परन्तु बीच में जो अराजक तत्व पैदा होते हैं उनका समूल नाश भी समय समय पर आवश्यक है और सम्मान केवल उनका करना चाहिए जो सम्मान के योग्य हों ।

भ्रम :- हमारी संस्कृति हमें किसी से लड़ना नहीं सिखाती ।

निवारण :- तो क्या हमारी संस्कृति हमें कायरता और नपुंसकता सिखाती है ? उचित स्थान पर युद्ध करना हमारी संस्कृति का एक भाग है ।

भ्रम :- हमने कभी किसी दूसरे देश पर आक्रमण करके उसपर अधिकार नहीं किया ।
निवारण :- तो क्या विश्व का चक्रवर्ती शासन आपको विदेशियों ने गिफ्ट में दे दिया था ? अवैदिक मतों का नाश कर वैदिक धर्म का ध्वज लहराने के लिए समय समय पर राज्य की सीमाओं का विस्तार करके चक्रवर्ती शासन करने के लिए वेद का आदेश है और हमारे महापुरुषों ने इसे किया भी है ।

भ्रम :- हमें सब धर्मों का सम्मान करना चाहिए किसी दूसरे के धर्म का अपमान नहीं करना चाहिए । हमें हमारे शास्त्र ऐसा करना नहीं सिखाते ।

निवारण :- तो क्या हमारे शास्त्र ये सिखाते हैं कि अपने धर्म की निंदा सुनकर हिजड़ों की तरह शांति का जाप करते रहो और मुस्कुराते रहो ? हमारे न्याय आदि सारे दर्शन ये बलपूर्वक कहते हैं कि तर्क और युक्तियों से असत्य बातों का खंडन करो और सत्य
सिद्धान्तों की स्थापना करो । और धर्म केवल वैदिक ही होता है दूसरा कोई धर्म है ही नहीं ।बाक़ी सब संमप्रदाय / मत हैं। धर्म का अर्थ कर्तव्य है।

भ्रम :- हमने अपने देश में सभी संस्कृतियों को आश्रय दिया क्योंकि हम अतिथि देवो भव वाली संस्कृति पर विश्वास करते हैं ।

निवारण :- आपने किसी को आश्रय नहीं दिया बल्कि वे बलपूर्वक आपको रौंदते हुए आपकी जमीनें हथ्याकर आपकी छाती पर चढ़ बैठे हैं जिनको आप अपने देश से निकाल नहीं पाए । और क्या अतिथि देवो भव का ये अर्थ होता है कि आपके घर में कोई अतिथि आए और वो आपके घर की सम्पदा को लूटना शुरू कर दे और आपकी स्त्रियों को दूषित करना शुरू कर दे और उसके बाद आप उसको अपने घर में रहने की अनुमति दे दें ? ये बेशर्मी भरे सिद्धान्त कहाँ से सीखे आपने ? इसलिए आपको आक्रांता और अतिथि में अंतर ही नहीं पता ।

भ्रम :- हमें हमारे धर्म पूर्ण धैर्य की शिक्षा देता है, इसलिए अपने शत्रु को भी क्षमा करने वाला देवता होता है ।

निवारण :- तो अपने देवता बनकर करना क्या है ? वैसे भी कायरता और धैर्य में अंतर है, धैर्य हर स्थान पर नहीं कभी कभी शोभा देता है, और शत्रुओं का आक्रमण होता रहे और आप धैर्य को पकड़कर चाटते रहो और कुछ करो ही नहीं तो ये कायरता और नपुंसकता है । शत्रु को क्षमा नहीं बल्कि उसका पूरा ही विनाश करना चाहिए और अपनी प्रजा की रक्षा करनी चाहिए । जब तक एक भी आपका शत्रु जीवित है तबतक सुख से नहीं बैठना चाहिए ।

भ्रम :- हम राम और कृष्ण की संस्कृत को मानने वाले लोग हैं ।

निवारण :- केवल मानने मात्र से ही काम चल सकता तो आज राम मंदिर के लिए सैकड़ों वर्ष संघर्ष न करना पड़ता और कृष्ण जन्मभूमि आदि को मस्जिद मुक्त करने का प्रश्न ही नहीं होता । परन्तु राम और कृष्ण की संस्कृति का पालन करने वाले होते तो भारत में एक भी विदेशी विधर्मी आदि न होता । कितने राम के भक्त हैं जो धनुष चलाना जानते हैं ? कितने कृष्ण भक्त हैं जो सुदर्शन चक्र चलाना जानते हैं ? कितने हनुमान भक्त हैं जो गदा चलना जानते हैं ? कितने परशुराम भक्त फरसा चलाना जानते हैं ? तो केवल मानने से ही नहीं पालन करने से बात बनेगी ।

 

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Author: cnindia

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