गौरीगंज मुआवजा निर्धारण व वितरण में हुए खेल की जड़ें बहुत गहरी हैं। मुआवजा निर्धारण और वितरण में हुआ खेल धीरे-धीरे सामने आ रहा है। इसमें अफसरों की मनमानी का आलम यह रहा कि मुसाफिरखाना तहसील क्षेत्र के 45 गांवों में हुए मुआवजे निर्धारण के दौरान तीन ऐसे गाटों का मुआवजा दिया गया, जिन पर पहले से ही नेशनल हाईवे (एनएच) बना हुआ था।
आलम यह रहा कि अफसरों ने मुआवजा वितरण में मानकों की जमकर अनदेखी की। सड़क किनारे की एक ही श्रेणी की भूमि का मुआवजा भी कम ज्यादा कर दिया। जो जितना बड़ा और प्रतिष्ठित किसान, उसके मुआवजे की दर उतनी ज्यादा। मामला सामने आने के बाद डीएम राकेश कुमार मिश्र की ओर से गठित जांच टीम ने पाया गया कि अफसरों नेे तीन ऐसे गाटों का मुआवजा निर्धारित कर बांट दिया, जिस भूमि पर अरसे पूर्व से ही हाईवे बना हुआ है।
राजस्व सूत्रों के अनुसार जिले में किसी भी प्रकार के भूमि अधिग्रहण से पहले डीएम की ओर से एडीएम को सक्षम प्राधिकारी भूमि अध्याप्ति (काला) नामित किया जाता है। इस घोटाले को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इस नियम की भी अवहेलना की गई। तत्कालीन डीएम ने एडीएम के बजाय मुसाफिरखाना तहसील के एसडीएम को ही सक्षम प्राधिकारी भूमि अध्याप्ति नामित कर दिया। कार्यदायी संस्था के अफसरों का दायित्व होता है कि वे अधिकारी से मिलकर मुआवजा निर्धारण व वितरण की प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से पूरा करें।384 करोड़ के घपले में संदिग्ध माने गए एसडीएम अभय पांडेय 10 दिसंबर 2016 से तीन जुलाई 2018 तक मुसाफिरखाना के एसडीएम व काला के पद तैनात रहे। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ कई गांवों को अवार्ड किया बल्कि सबसे अधिक मुआवजा वितरण का कार्य भी इसी दौरान हुआ। मुआवजा निर्धारण व वितरण में संदिग्ध पाए गए अभय पांडेय का जमीर तब जागा जब वे जिले से स्थानांतरित होकर बाराबंकी पहुंच गए।
31 दिसंबर 2020 को अभय पांडेय ने परियोजना निदेशक भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएच-56) को पत्र लिखकर मुआवजा निर्धारण व वितरण में गड़बड़ी की आशंका जताई। इस पत्र के बाद ही एनएचएआई ने डीएम की कोर्ट में वाद दायर किया। यही पत्र अब अन्य अफसरों के साथ अभय पांडेय के लिए मुसीबत बन गया है।