हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास (माघ महीना) के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव अष्टमी मनाई जाती है. माना जाता है कि इसी दिन काल भैरव का अवतरण हुआ था अष्टमी को काल भैरव के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
इस दिन मंदिरों में काल भैरव की विशेष पूजा-अराधना की जाती है. पौराणिक कथा के अनुसार काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध से हुई थी. जो भक्त काल भैरव की पूजा करते हैं, उनके प्रति इनका स्वभाव दयालु और कल्याणकारी होता है. वहीं अनैतिक कार्य करने वालों को काल भैरव दंड भी देते हैं. इसलिए इन्हें दंडाधिपति के नाम से भी जाना जाता है.
भगवान शिव के कई रूपों में काल भैरव भी एक है. पौराणिक कथाओं के अनुसार काल भैरव को भगवान शिव का विक्राल, रौद्र और उग्र रूप माना गया है. क्योंकि इनकी उत्पत्ति शिवजी के क्रोध से हुई है.
शिवजी के क्रोध से जन्म लेकर भैरव ने ब्रह्मा जी को दंड दिया. इसलिए भी इन्हें दंडाधिपति कहा जाता है. काल भैरव का वाहन काला कुत्ता है और इनके हाथ में एक छड़ी होती है.