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21/09/2024 3:09 pm

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महागठबंधन के बहाने होने जा रही है मतलबपरस्त दलो की एकजुटता: वसीम

बाराबंकी। एक बार फिर सत्तालोलुप व घोर मतलबपरस्त दलो की एकजुटता महागठबंधन के बहाने होने जा रही है। असल में यह महागठबंधन नहीं बल्कि महाठगबंधन है, जिसके जरिए सियासी पार्टियां अपनी ताकत दिखाने के लिए एक दूसरे से हाथ मिलाने के लिए बेताब हैं पर इनके मकसद पूरे नहीं होते क्योकि सत्ता के लालची कभी समाज का भला नहीं कर सकते।
यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने अपने मीडिया को जारी बयान में कही। उन्होने कहा कि चुनाव करीब होते ही इन दलो को एकता याद आने लगती है। वास्तविकता यह है कि जैसे तैसे यह दल तो एक हो जाते हैं पर आमजन इनके बहकावे में आकर एक नहीं हो पाता। ऐन वक्त पर जातिवाद में बंटा समाज ऐसे महाठगबंधन के लिए किफायत साबित हो जाता है। इन्ही दलों के लोग समाज को बांट कर फायदा उठाने में जुट जाते हैं। यही तस्वीर हाल में उभर कर आई है। समाजवादी पार्टी को अब एकजुटता की याद सताने लगी है, यह वही दल है जो स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहलाना पसंद करता है जबकि कार्यशैली भेदभाव व बांटो और राज करो की है। इन्ही की लाइन में बसपा, कांग्रेस, सुभासपा, रालोद जैसे दल भी हैं जो एकता का राग अलाप रहे हैं पर इनमें से किसी ने भी समाज का भला नहीं सोचा। हैरत इस बात की है कि देश की 85 फीसदी पसमांदा मुस्लिम आबादी को उसके बुनियादी हक से महरूम रखने के लिए यही दल जिम्मेदार भी हैं इसके बाद भी महागठबंधन की आड़ लेकर स्वार्थ पूर्ति करने की तैयारी कर रहे हैं।
वसीम राईन ने कहा कि इन मतलबपरस्त दलो के असली चेहरे पहले भी सामने आते रहे हैं, इससे पहले भी महागठबंधन का रायता फैलाया जा चुका है। सत्ता के भूखे यह दल सिर्फ अपना घर अपने लोग के पक्ष में रहे, समाज का भला कभी नहीं सोचा न ही कभी धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़ने की कोशिश ही की बस कोरी बयानबाजी के सहारे पसमांदा मुसलमान को वोटबैंक बनाते रहे। उन्होने पसमांदा समाज को आगाह व जागरूक करते हुए अपील की कि महागठबंधन की आड़ में बनने जा रहे महाठगबंधन से सावधान रहो और इनके बहकावे में बिल्कुल मत आएं। हमदर्दी का लबादा पहनकर यह दल फिर मतलब साधने की कोशिश में हैं। इनके छलावे में फंसना यानी फिर एक बार ठगे जाना है।
उन्होने कहा कि सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद, सुभासपा का इतिहास ही सत्तालोलुप दलो का रहा है। यही वजह है कि यह लोग चुनाव करीब देखकर एकता का राग अलापने लगते हैं। इस एकता का मतलब समाजहित से लगाना बेकार है बल्कि कमजोर होते विपक्ष की कमजोरी छिपाने व ढकने का कोरा प्रयास भर है।

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Author: cnindia

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