लखनऊ। पारिवारिक न्यायालय में दर्ज होने वाले तलाक के एक मामले को लेकर वकील भी भौंचक्क रह गए, जब वादी-प्रतिवादी सुलह की अर्जी लेकर अदालत में चले आए। दो पत्नियों और एक पति के बीच का विवाद तलाक के मुकदमे के साथ पारिवारिक न्यायालय लखनऊ तक पहुंचा।
अचानक से वादी-प्रतिवादी पलटे और उन्होंने समझौता पत्र के साथ अदालत में मुकदमा वापस लेने की अर्जी लगा दी। सुलह इस आधार पर हुई कि तीन दिन पति एक पत्नी के साथ और चार दिन दूसरी पत्नी के साथ रहेगा। यदि चाहें तो तीज त्योहार पर मिलते-मिलाते रहेंगे और कोई भविष्य में किसी पर कोई मुकदमा नहीं करेगा। पारिवारिक न्यायालय में इन दिनों इस समझौता पत्र की चर्चा खूब है। अधिवक्ताओं को कहते सुना जा रहा है कि मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी।
हालांकि यहां मामला दो बीबियों का है। शहर के एक पॉश इलाके में रहने वाले युवक की शादी 2009 में माता-पिता की मर्जी की लड़की से हुई, जिससे दो बच्चे भी हैं। 2016 से दोनों अलग हुए, युवक ने प्रेम विवाह रचाया और दोनों ने मिलकर अदालत में पहली पत्नी से तलाक का मुकदमा दायर कर दिया। दूसरी पत्नी से एक संतान है।
अधिवक्ता दिव्या मिश्रा का कहना है कि 2018 में ये वाद दाखिल हुआ। बीच में कोरोना के कारण सुनवाई टलती चली गई। कोरोना के बाद दोनों पक्ष आए तो एक समझौते पर राजी हो गए। समझौता पत्र व हलफनामा दाखिल कर दिया गया, जिस पर अदालत ने 28 मार्च को वाद निरस्त करने का फैसला सुनाया।
समझौता पत्र के मुताबिक, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को पहली पत्नी के साथ पति के रहने पर सहमति बनी। जबकि शेष 4 दिन दूसरी पत्नी के साथ रहने पर सहमति बनी है।
साथ ही ये भी तय हुआ है कि तीज-त्योहार अपवाद या किसी अन्य अवसर पर वो किसी एक पत्नी के साथ मौजूद रह सकता है, जिस पर किसी को आपत्ति नहीं होगी। साथ ही चल-अचल संपत्ति पर दोनों का समान हक होगा।
इसके अलावा 15 हजार रुपये भरण पोषण के लिए पहली पत्नी को पति देगा। इन सब शर्तों को स्वीकार करते हुए दायर वाद को वापस लेने पर दोनों पक्ष राजी हो गए। पारिवारिक न्यायालय ने वादी की वाद निरस्त करने की अर्जी को स्वीकार कर लिया और 28 मार्च 2003 को फैसला सुनाया कि वादी अपना वाद वापस लेना चाहते है, जिस कारण वाद निरस्त किया जाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 494 और हिंदु विवाह अधिनियम के तहत जो कोई भी पति या पत्नी के जीवित होते हुए किसी ऐसी स्थिति में विवाह करेगा जिसमें पति या पत्नी के जीवनकाल में विवाह करना अमान्य होता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा।