कल जो मूर्तियाँ गिरीं उनकी वजह थी भ्रष्टाचार। गुजरात के उस ठेकेदार को काम दिया गया जिसने कम बोली लगाई। जब जाँच के नाम पर सब रफ़ा दफ़ा किया जाने लगा तो महाकाल ने हवा चलाकर मूर्तियों की गुणवत्ता ख़ुद ही सबके सामने रख दी। महाकाल के बाद आइए काशी विश्वेश्वर के चरणों में। बनारस में भी विश्वनाथ कॉरिडोर बना है। अगल बगल की बस्ती को ही नहीं, बाबा की कचहरी, पंच विनायक, बाबा के गण और पुरातन धरोहरों को उजाड़ कर, क्योंकि, एक सनक और जिद को पूरा करना था। गंगा के घाटों की दिव्य परंपरा को, अवक्रमित कर दिया गया। गंगा जल का रंग बदल गया। न जाने कितने पूजित और प्राण प्रतिष्ठित विग्रहों को, उखाड़ और उजाड़ कर, पत्थरों का एक कॉरिडोर बना दिया गया। अब सुनते हैं, वही होटल बन गया। बाबा के दर्शन से अधिक इस कॉरिडोर का अब महत्व अधिक बताया जाता है। पहले बनारस जाने पर कहा जाता था, “चला विश्वनाथ जी, दर्शन करे।” अब कहा जाता है, “अरे मोदी जी बनवउले हउअन, कॉरिडोर देखला कि ना।” तीर्थत्व कैसे, पर्यटन स्थल में बदल जाता है या उसे बदल देने की साजिश की जाती है, इसका उत्तर महाकाल ने दे दिया है। अब अगर महाकाल में भ्रष्टाचार के आरोप हैं तो विश्वनाथ भी अछूते नहीं हैं।गुजराती ठेकेदार महाकाल में हैं तो गुजराती ठेकेदार आप को बनारस में भी मिल जायेंगे। रहा भ्रष्टाचार का, तो पक्का महाल के उजाड़ने से लेकर कॉरिडोर बनने तक, भ्रष्टाचार की खबरें यहां भी आती रही हैं। मेरे मित्र और वरिष्ठ पत्रकार Suresh Pratap Singh ने, बनारस के इस विध्वंस पर उड़ता बनारस के नाम से एक किताब ही लिख दी है। लेकिन महाकाल और विश्वनाथ की भूमिका और तासीर में अंतर है, और महाकाल ने अपनी तासीर दिखा दी है।