27/07/2024 9:19 am

www.cnindia.in

Search
Close this search box.

become an author

27/07/2024 9:19 am

Search
Close this search box.

यूपी: थानों के ‘कारखास’ के जेब में लॉ एंड ऑर्डर तो कैसे मिलेगा लोगों को न्याय, योगी सरकार की लॉ एंड ऑर्डर की धज्जियां उड़ा रहे हैं कारखास सिपाही

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च 2017 को शपथग्रहण के बाद प्रदेश की बिगड़ी हुई कानून एवं व्यवस्था को पटरी पर उद्देश्य से एन्टी भू-माफिया टास्क फोर्स का गठन करने के साथ ही कई नये कानून भी बनाये। सीएम योगी आदित्यनाथ की मंशा रही है यूपी की कानून एवं व्यवस्था अन्य राज्यों के लिए नजीर बने सीएम योगी की जीरो टॉलरेंस नीति पर थानों के कारखास/सिपाही लॉ एंड ऑर्डर की धज्जियां उड़ा रहे हैं। प्रदेश में होम मिनिस्टर का पद चीफ मिनिस्टर अपने पास ही रखते हैं ऐसा इसलिए लॉ एंड ऑर्डर को खुद कंट्रोल करने के उद्देश्य से प्रदेश में होम मिनिस्टर का पद सीएम योगी आदित्यनाथ अपने पास ही रखे हुए हैं।सबसे बड़ा सवाल है कि यूपी की लॉ एंड ऑर्डर को कौन कंट्रोल करता है सीएम, डीजीपी या फिर थानों के कारखास/सिपाही आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यूपी में लॉ एंड ऑर्डर कारखास/सिपाही जेब में लेकर घूमते हैं,न तो ये डीजीपी यहां तक सीएम के ऑर्डर को भी नहीं फॉलो करते हैं। बस इनका एक ही विजन रातोंरात अमीर बनना,इसके लिए चाहे लॉ एंड ऑर्डर धज्जियां ही उड़ना पड़े,यूपी की बिगड़ी हुई कानून एवं व्यवस्था सबसे ज़्यादा जिम्मेदार कारखास/सिपाही ही है। थानों पर आए दिन कारखासों के कारण बवाल होते रहते हैं। थाने की कारखासी हासिल करना इतना आसान नहीं है। जो सिपाही सबसे ज्यादा भ्र्ष्टा होगा वही थाने का ‘कारखास’ बनेगा। कारखास/सिपाही ट्रांसफर होने के बावजूद थाने पर डटे रहते है एवं एसपी के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए अंगद की तरह पांव जमाये रहते हैं। जब कारखास सिपाहियों पर कोई कार्रवाई की बात आती है तो पूरे प्रदेश में एक नाम प्रमुखता आता है आईपीएस प्रभाकर चौधरी का (एसएसपी बरेली ) प्रभाकर चौधरी जिस जिले का चार्ज मिलता है उस जिले के थानों के कारखास/सिपाहियों में हड़कंप मच जाता है। जिले के सभी थानों के कारखासों की गोपनीय जांच करा एक कारखास सिपाहियों को निलंबित करते हुए पुलिस लाइन भेज देते हैं।अभी हाल में बांदा सर्राफा व्यापारी की औरैया जिले में हाइवे पर 50 किलो चांदी की लूटने के मामले में औरैया और कानपुर देहात एसएसपी की संयुक्त छापामारी में कानपुर देहात के भोगनीपुर थाना के सरकारी आवास पर 50 किलो चांदी बरामद हुई तथा इंस्पेक्टर और दरोगा को गिरफ्तार कर लिया गया एवं लूट का मास्टरमाइंड भोगनीपुर थाने का कारखास सिपाही रामशंकर यादव भनक लगते ही फरार हो गया है उत्तर प्रदेश में ज्यादातर थानों में कारखास (विभागीय पद नहीं ) की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होते हैं इलाके में होने वाली वसूली और थाने के खर्च का पूरा लेखा जोखा इनके पास होता है। अमूमन सादे कपड़ों में रहने वाले ‘कारखास’ का रुतबा थानेदार से कम नहीं होता। मनचाही ड्यूटी लगवानी हो या मलाईदार चौकी पर पोस्टिंग, ‘कारखास’ की मर्जी के संभव नहीं। थानों पर चल रहे पुलिस विभाग के इस अवैध सिस्टम को पुलिसकर्मियों के बेलगाम /भ्र्ष्टा होने की सबसे बड़ी वजह माना जा रहा है। पुलिस की विभागीय शब्दावली में भले ‘कारखास’ नाम का पद न हो, लेकिन थाने इनके बिना नहीं चलते। लगभग हर थाने में वसूली के लिए किसी न किसी सिपाही या दीवान को बतौर ‘कारखास’ रखा जाता है। थाने से होने वाली पूरी वसूली की कमान इनके पास होती है। साहबों के लिए पैकेट तैयार करने से लेकर थाने के मद में होने वाले खर्च का ब्योरा भी ‘कारखास’ ही रखता है। हालात यह हैं कि भले ही थानेदार का तबादला हो जाए, लेकिन ‘कारखास’ बरसों तक जमा रहता है। प्रदेश के कई थानों पर आये दिन ‘कारखास’ को हटाने को लेकर हंगामा होते रहते हैं । कई ‘कारखास’ इतने पावरफुल हैं कि उनके काले कारनामे के चर्चे अक्सर ही शासन तक पहुचंते रहते हैं।हर थाना क्षेत्र में लगने वाले अवैध ठेले और खोमचे वालों से लेकर वन क्षेत्र की लकड़ियों की कटाई, अवैध खनन,अवैध पार्किंग स्टैंड से भी वसूली का जिम्मा ‘कारखास’ का होता है। नए थानेदार तो बस ‘कारखास’ की सलाह पर ही पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाते हैं।गश्त के नाम पर ‘कारखासों’ के खास कई बार राहगीरों से वसूली करने से भी बाज नहीं आती। आउटर के इलाकों में रात में अगर दूसरे जिले की गाड़ी नजर आ जाए तो मोटी रकम दिए बिना बच निकलना मुश्किल होता है।पुलिस विभाग में सबसे मजबूत कड़ी के रूप में शुमार थानों पर थानेदार की कृपा से तैनात किए जाने वाले ‘कारखासों’ की वजह से आज भी कानून व्यवस्था कटघरे में खड़ी है। हालत यह कि शायद ही कोई थाना ऐसा हो जहां इनकी मौजूदगी मजबूती से न हो। यह थाने पर किसी रोल मॉडल से कम नहीं होते हैं। थानेदार के अति करीबी माने जाते हैं तो विभागीय अधिकारियों के साथ ही राजनीतिक लोगों से सेटिंग करने में इन्हें महारत हासिल होती है। थानों को व्यवस्थित चलाने में इन ‘कारखासों’ की अहम भूमिका होती है। इनका आदेश थानेदार के आदेश की तरह होता है। थानेदार के पास कोई बड़ी समस्या जाने से पहले ‘कारखास’ के पास से ही होकर गुजरती है। थानेदार/ इंचार्ज को किससे कब मिलना है, इसकी भी सेटिंग वही करते हैं।प्रदेश के कई थानों पर हालत है कि थानेदार बिना ‘कारखास’ के एक कदम भी नहीं चल पाते। कहीं कहीं पर उनकी की मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिलते हैं वह थाना क्षेत्र के दबंगों,अवैध कारोबारियों से लेकर पत्रकारों, जनप्रतिनिधियों के संपर्क में रहते हैं। यहां तक कि थानेदारों/ इंचार्जों के व्यक्तिगत काम भी उन्हीं के जिम्मे रहता है। सुबह ‘साहब’ के उठने से पहले ‘कारखास’ उनके आवास पर पहुंच जाते हैं। फिर क्या करना है और कब किससे मिलना है, कौन मिलने आ रहा और क्षेत्र में कहां क्या घटित हुआ आदि की पूरी जानकारी देते हैं। यहां तक कि थाने में तैनात अन्य सिपाही भी अपनी समस्या थानेदार से कहने के बजाय ‘कारखास’ से ही बताते हैं और वह इसकी जानकारी थानेदार को देते हुए निस्तारण कराकर उन पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। इससे सिपाही,दरोगा भी इसका विरोध नहीं कर पाते। यह थाने के अंदर व बाहर दोनों साइड पर अपना नियंत्रण रखते हैं। क्षेत्र की अधिकांश घटनाओं को मैनेज कराने में इनकी अच्छी भूमिका रहती है। कहीं-कहीं तो अपराध को बढ़ावा देने में भी ‘कारखास’ का अहम रोल माना जाता है। जुआ, शराब, जिस्मफरोशी के अड्डे चलवाने के साथ ही नशा विक्रेताओं, खनन माफियाओं, भू-माफियाओं, तस्करों, अवैध कारोबारियों, माफियाओं के गुर्गों, दबंगों, दलालों से इनकी साठगांठ तगड़ी रहती है। अधिकांश समय यह सादे ड्रेस में रहते हैं। किसी बड़े अधिकारी के आने पर ही ये वर्दी धारण करते हैं। अवैध रूप से मिलने वाले धन के कारण थानेदार/ इंचार्ज इनके इशारे पर नाचने लगते हैं। ‘कारखास’ से थाने पर तैनात सिपाही,दरोगा भी पंगा लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। ऐसे में कहे तो इनकी भूमिका चूल्हे से लेकर चौकी,थानों तक होती है जिससे कारण अपराध से लेकर प्रदेश की कानून व्यवस्था तक लड़खड़ाते ही चल रहा है।प्रदेश में लगभग सभी थानों में केवल एक या दो ‘कारखास’ हैं तो मलाइदार थानों में कई ‘कारखास’ रखे गए हैं। जो अलग-अलग जगहों से अवैध वसूली करते हैं। यही नहीं थाने के साथ साथ अब तो कमायी वाली चौकियों पर भी कारखासों की तैनाती की जाने लगी है।सबसे बड़ी बात है कि सरकार ने इनको जनता की सेवा के लिए नियुक्त किया है, लेकिन यह ‘कारखास’ सिविल ड्रेस में होकर केवल अवैध धन उगाही का जरिया खोजते हैं और कैसे अवैध वसूली का धंधा बढ़े इस पर उनका ध्यान ज्यादा होता है।ऐेसे में बेलगाम ‘कारखास’ अवैध कमाई बढ़ाने के लिए इलाके में अवैध धन उगाही का माध्यम तलाशते रहते हैं। इनकी जद में ज्यादातर आम लोग शिकार होते हैं,छोटे मोटे मामलो में बड़ी रकम वसूली जाती हैं,किसी को भी फर्जी मुकदमे में फंसाकर जेल भेजवाना तथा सरकारी,निजी सार्वजनिक और निर्धन,निर्बल और असहाय लोगों की जमीनें कब्जा करवाना इनके बायें हाथ का खेल है,जिससे सरकार की छवि तो खराब होती ही है, आमलोगों में पुलिस के प्रति भय का वातावरण भी कायम हो जाता है। यही नही, सेटिंग में महारथ हासिल किये ये ‘कारखास’ सत्ता पक्ष के कुछ पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं की भी परिक्रमा करने से नही चूकते है और उनके भी आवश्यक आवश्यकताओं का विशेष ख्याल रखते हैं, जिससे जब भी इनके व साहब के खिलाफ जनता आवाज उठाती हैं तो सत्ता के गलियारों तक अपनी पहुच रखने वाले लोग इन्हें अभयदान दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर जाते हैं,कितनी सरकारें आयी गई लेकिन इस अवैध सिस्टम को बन्द नहीं करा सके कानून व्यवस्था के मामले में पूर्व मुख्यमंत्रियों से सख्त माने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अवैध वसूली बन्द करने का निर्देश कई बार दिये लेकिन अवैध वसूली आज भी जारी है।
‘कारखासों’ के तिलस्म तोड़े बिना उत्तर प्रदेश में न तो दबंगों,अपराधियों पर नियन्त्रण किया जा सकता है न ही कानून व्यवस्था का राज नहीं कायम किया जा सकता है।पुलिस विभाग में चर्चा यहां तक कि साहबों से बड़े बंगले तो इन ‘कारखास’ सिपाहियों के हैं,जो हर महीने लाखों रुपये अवैध उगाही के जरिए घर ले जाते हैं।

cnindia
Author: cnindia

Leave a Comment

विज्ञापन

जरूर पढ़े

नवीनतम

Content Table