राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दावा करते रहे उनकी सरकार ने जो जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया है, उसकी वजह से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रिपीट होगी। गहलोत ने महंगाई राहत शिविर में पंजीयन के आंकड़े बताते हुए कहा कि प्रदेश की जनता खुश है। जनता ने कांग्रेस को वोट देने का मन बना लिया है। गहलोत ने यह भी कहा कि राजस्थान में विपक्ष है ही नहीं। लेकिन 15 जून को जयपुर में युवक कांग्रेस के कार्यक्रम में गहलोत ने कहा कि सिर्फ योजनाओं से काम नहीं चलता है। राहुल गांधी के नाम का उल्लेख किए बगैर कहा कि विधायक नेताओं का व्यवहार कैसा है और जीतने की क्षमता कितनी है यह भी चुनाव परिणाम पर असर डालता है। 2018 में भी कांग्रेस को 100 सीटों पर हार मिली थी। गहलोत ने एंटी इनकंबेंसी का जिक्र करते हुए कहा कि हमारे एमएलए खुद कह रहे हैं कि मैं नहीं जीत पा रहा हूं। इस हताशा भरे संबोधन में ही गहलोत ने कांग्रेस हाईकमान के अधिकारों को भी चुनौती दी है। गहलोत ने कहा कि टिकट वितरण के समय दिल्ली में लंबी बैठक होती है। टिकट मांगने वालों का दिल्ली में जमावड़ा हो जाता। इससे जिस नेता को टिकट मिलता है वह चुनाव में स्वयं को थका हुआ महसूस करता है। गहलोत ने कहा कि उम्मीदवारों का चयन 2 महीने पहले ही हो जाना चाहिए। 15 जून को गहलोत ने जो बयान दिया वह हार पर अभी से ही विलाप करने जैसा है। ऐसा प्रतीत होता है कि गहलोत को टिकट बांटने में भी हाईकमान से फ्री हैंड नहीं मिल रहा है। अब तो हाईकमान को सीधे चुनौती दी जा रही है। गहलोत चाहते थे कि सचिन पायलट को दरकिनार कर प्रदेश के सभी 200 टिकट उनकी राय से वितरित किए जाएं। गहलोत को उम्मीद थी कि हाईकमान इन्हीं पर भरोसा करेगा, लेकिन हाईकमान ने खासकर राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया है कि राजस्थान में सचिन पायलट के सहयोग से ही चुनाव लड़ा जाएगा। यानी टिकट वितरण में पायलट का पूरा दखल होगा। हाईकमान का यह रवैया गहलोत को पसंद नहीं आ रहा है। यही वजह है कि अगले चुनाव में हार पर अभी से ही विलाप करना शुरू कर दिया है। गहलोत ने संकेत दिए हैं कि चुनाव में कांग्रेस की हार होती है उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। युवक कांग्रेस के कार्यक्रम में गहलोत ने हार के कारण सार्वजनिक कर दिए हैं। मालूम हो कि राजस्थान में इसी वर्ष नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं।
सचिवों की नियुक्ति पर रोक:
16 जून को कांग्रेस हाईकमान ने सीएम गहलोत को तगड़ा झटका दिया है। हाईकमान ने 85 प्रदेश सचिवों की नियुक्ति पर रोक लगा दी है, जिन्हें प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने हाल ही में नियुक्त किया था। ऐसे सचिव सीएम गहलोत की सहमति से नियुक्त किए गए। नियुक्तियों के बाद सचिवों ने अपने-अपने जिलों मे पार्टियां भी कर ली। अभी भी स्वागत सत्कार के दौर चल रहा है। सचिवों की नियुक्ति पर रोक के बाद पीसीसी सदस्यों की नियुक्ति पर भी संशय हो गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार 171 से भी ज्यादा को पीसीसी सदस्य नियुक्त किए, यह सूची भी डोटासरा के हस्ताक्षर से ही जारी हुई है। इस सूची पर भी कांग्रेस हाईकमान ने नाराजगी जाहिर की है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा से जवाब तलब किया है। रंधावा से पूछा गया कि क्या सचिवों और पीसीसी सदस्यों की नियुक्ति उनकी सहमति से हुई है? यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रदेश सचिवों की सूची डोटासरा के हस्ताक्षरों से जारी हुई थी। पीसीसी सदस्यों और सचिवों की नियुक्ति पर सचिन पायलट की ओर से एतराज जताया गया था। डोटासरा ने ऐसी नियुक्तियां तब की जब सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की चर्चा हो रही थी। सचिवों की नियुक्ति पर रोक लगाए जाने के संबंध में प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा का कहना है कि यह सूची कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की सहमति से जारी होनी चाहिए थी, अब जब राष्ट्रीय अध्यक्ष की सहमति मिल जाएगी, तब सूची को दोबारा से जारी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह तकनीकी खामी है, हालांकि प्रदेश कमेटी ने प्रदेश प्रभारी रंधावा से सचिवों की नियुक्ति पर सहमति ले ली थी।
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