बाराबंकी। गलियों में, गुल्ली कंचों से, चोर सिपहिया से, लौटाएंगे बचपन, फिर मिल चप्पू भैया से। जैसे कालजई गीत लिखने वाले डॉ विनोद निगम पंचतत्व में विलीन हो अपने सदाबहार नवगीतों के माध्यम से हम सभी के बीच सदा सदा के लिए अमर हो गए।
राष्ट्रभाषा परिषद और कल्पनाथ सिंह सेवा न्यास के तत्वावधान में देवा मार्ग स्थित के डी पैलेस के सभागार में आयोजित प्रार्थना सभा में सरल, सौम्य और शांत स्वभाव के बाराबंकी में जन्मे नर्मदांचल के सर्वप्रिय नवगीतकार डॉ विनोद निगम को नम आंखों से भावभीनी श्रद्धांजलि बाराबंकी जिले के साहित्यकारों द्वारा दी गई। डॉ विनोद निगम के विभिन्न संस्मरणों को याद करते हुए श्रद्धांजलि समर्पण की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार साहित्य भूषण मो. मूसा खां अशांत जी ने की।
उन्होंने कहा कि साहित्यकार कभी मरता नहीं है वह अपनी लेखनी के माध्यम से अजर अमर हो जाता है। डॉक्टर विनोद निगम का रचना संसार हम सभी लोगों के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा। विशिष्ट अतिथि डॉ बलराम वर्मा, प्राचार्य वीणा सुधाकर ओझा महाविद्यालय मसौली ने कहा कि नर्मदापुरम तो उनकी कर्मभूमि थी किंतु उनकी जन्मभूमि, और भावनाओं से भरा कवि अपनी जन्म भूमि को कभी बिसार नहीं सकता डॉक्टर निगम का व्यक्तित्व कुछ ऐसा ही था वह अपनी जन्म भूमि से अथाह प्यार करते रहे।राष्ट्रभाषा परिषद के अध्यक्ष अजय सिंह गुरु ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि आज विनोद निगम जी सूक्ष्म कणों के माध्यम से हम सभी के मध्य विराजमान हैं। उन्होंने हिंदी नवगीत को एक नया आयाम दिया एक नई ऊंचाई प्रदान की। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ विनय दास ने कहा कि वे जब भी होशंगाबाद अब का नर्मदा पुरम से बाराबंकी जब भी आते थे तो पहले से ही सूचना दे देते थे और बाराबंकी आने पर उनके निश्चित पडाव हुआ करते थे वे उसकी रूपरेखा पहले से ही निर्धारित कर लेते थे और वे सभी स्थानों पर क्रमशः अवश्य आते थे और साल में तीन से चार बार उनका आना यह एक अनिवार्य क्रम था।कल्पनाथ सिंह सेवा न्यास के अध्यक्ष सर्वेश कुमार सिंह ने कहा कि यह बाराबंकी की माटी की अपूरणीय क्षति है डॉक्टर निगम का सद्य प्रकाशित संकलन, जो कुछ भी हूं बस गीत हूं, की भूमिका जरूरी नहीं फिर भी अपने बारे में, का वाचन करते हुए श्री सिंह ने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए और उनके जीवन पर प्रकाश डाला। प्रताप नारायण मिश्र, प्रदीप सारंग, राजकुमार सोनी, नागेन्द्र सिंह, साहब नारायण शर्मा, डॉ. कुमार पुष्पेंद्र ने अपनी काव्यांजलि के माध्यम से श्रृद्धा सुमन अर्पित किए। श्रीमती सरिता रस्तोगी ने बाराबंकी पर लिखें उनके गीत का जब वाचन किया तो पूरा सभागार भावुक हो गया। डा. सुजीत चतुर्वेदी ने कहा कि मेरा पूर्व जन्म का अवश्य कोई नाता रहा होगा जो आज यहाँ उपस्थित हूँ। इस अवसर पर डॉ अनीता सिंह, डॉ योगेश वर्मा, डॉ प्रखर, पंकज वर्मा कवंल, श्रीमती अरुणा सिंह सहित उनके परिजन श्री अशोक रस्तोगी श्री विवेक रस्तोगी और उनके बचपन के सखा गिरीश चंद गुप्ता चप्पू भैया भी मौजूद रहे।