भारत जोड़ो यात्रा के पहले तक, पक्ष-विपक्ष सभी के समर्थकों में ये स्पष्ट था कि 2014, 2019 की तरह ही 2024 भी मोदी की झोली में जाएगा। और इसे लेकर कहीं कोई दो मत नहीं थे। लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के बाद थोड़ा-थोड़ा माहौल बदला- कि नहीं नरेंद्र मोदी के अलावा कोई और भी विकल्प माना जा सकता है। हालाँकि भारत जोड़ो के दौरान और खत्म होने के बाद तक इसके प्रभाव पर अलग-अलग मत थे, किसी को गेम चेंजर लगी, किसी को लगा कि इससे कुछ नहीं हुआ. लेकिन भारत जोड़ो के प्रभाव की परीक्षा आगे पता चलनी थी कि ये सफल हुई या नहीं? इसी बीच कांग्रेस की कर्नाटक विजय ने विपक्ष को ये संकेत दिया कि भाजपा के रथ का कांग्रेस ‘शायद’ मुक़ाबला कर सकती है। हालाँकि अभी भी ‘शायद’ शब्द बहुत मज़बूत था। कांग्रेस अब भी भाजपा के सामने काफ़ी असंगठित और अप्रभावी नजर आ रही थी.लेकिन जैसे जैसे इधर मध्य प्रदेश में भाजपा के नेताओं में खलबली मची और कमलनाथ विजेता के रूप में उभरने लगे। शिवराज सिंह चौहान की हार लगभग तय दिखने लगी. चीजें पलटने लगीं. इधर राजस्थान में अशोक गहलोत की जनकेन्द्रित लोकलुभावन सरकारी योजनाओं ने नरेंद्र मोदी की पिच को पकड़ लिया. यानी जो काम केंद्र में मोदी कर रहे थे, वही काम राजस्थान में गहलोत ने किया. ऊपर से यहाँ के भाजपा के स्थानीय नेतृत्व के प्रति जनता में अधिक उत्साह नहीं है. ऐसा कम ही नजर आता है कि राजस्थान में सत्ता पक्ष के प्रति इतना अलगाव पैदा न हुआ हो, और विपक्ष (भाजपा) के प्रति इतना कम उत्साह हो. इस चीज ने राजस्थान में कांग्रेस की वापसी के धुंधले धुंधले ही सही मगर संकेत जरूर दिए.उधर छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के आसपास पक्ष और विपक्ष दोनों में ही कोई नेता नहीं बचा, जितनी कमजोर भाजपा छत्तीसगढ़ में है उतनी कहीं नहीं। छत्तीसगढ़ में भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत तय सी है. हिमाचल और कर्नाटक में कांग्रेस की जीत और इन तीन बड़े राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के रुझानों ने 2024 की लड़ाई में कांग्रेस को मजबूती के साथ वापस ला दिया। इनमें से बाक़ी राज्यों का नहीं पता लेकिन मध्य प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा का प्रभाव भी पड़ा है।जिस तरह भाजपा ने दिल्ली में आप सरकार को दन्तहीन कर दिया और महाराष्ट्र में विपक्ष की सरकार को मिटा ही दिया. बिहार में भी राजद परिवार पर निजी हमला किया. इसने विपक्षी पार्टियों को ये स्पष्ट कर दिया कि मोदी धीरे धीरे एकछत्र राज करने की लालसा में हैं. और वे किसी भी स्तर पर गिर सकते हैं. साम-दाम दंड भेद. इस चीज ने विपक्षी पार्टियों में असुरक्षा का भाव भरा, और 5 राज्यों में कांग्रेस की वापसी की आहट ने उन्हें कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व में अपना बचाव दिखा. इस चीज ने इंडिया गठबंधन की जड़ें मजबूत कींपहले ऐसे लग रहा था कि विपक्षी गठबंधन शायद उतना काम नहीं कर पाएगा. लेकिन जिस समझदारी का परिचय लालू प्रसाद यादव जैसे वरिष्ठ नेता ने दिखाया. उसने इस गठबंधन में बड़े-बूढ़े की अक्ल वाला काम किया. यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि आज भले ही कई पार्टियाँ अपने अपने शीर्ष नेताओं को PM की तरह देखती हों लेकिन गैर- मोदी विरोधी वोटरों में @RahulGandhi को लेकर एक अन्दर ही अन्दर सहमती दिख रही है. राहुल की भारत जोड़ो यात्रा के बाद की छवि. उनकी संसदीय सदस्यता का जाना, इस बीच लोगों के बीच जाने की उनकी तस्वीरें, कांग्रेस का 5 राज्यों में पलड़ा भारी होना. इन तमाम चीजों ने मोदी बनाम कौन के प्रश्न के सामने राहुल को खड़ा कर दिया.जो 2024 चुनाव अभी तक इकतरफा मोदी विजय का मालुम पड़ रहा था अब वो 65 (INDIA) बनाम 35 (NDA) के मैदान में चला गया है. इस अगले एक वर्ष में इंडिया गठबंधन अपनी तरफ लोगों को कितना विश्वास दिला पाता है? कितना एकजुट रह पाता है. इससे कहीं न कहीं 2024 की दिशा तय होगी. लेकिन अब मामला इकतरफा नहीं है, अभी वैसे बराबरी का भी नहीं है, इंडिया गठबंधन स्पष्टतः अब भारी दिखने लगा है, जो अब तक नजर नहीं आ रहा था. भाजपा पिछले दस सालों के अतीत में सबसे कमजोर स्थिति में है.यदि One Nation One Election वाला कीड़ा काटा तो जनता इसे दूसरे नोटबंदी और लॉकडाउन के फैसले की तरह लेगी जिसके लिए वो तैयार नहीं है. अचानक इतना बड़ा बदलाव भाजपा के लिए ही उल्टा पड़ सकता है और उसकी मंशा को लेकर जनता में अविश्वास भर सकता है. जनता में संकेत जाएगा कि शायद भाजपा हार रही है… इसे कोई हरा भी सकता है. हार का ये संकेत ही उसके खिलाफ़ लहर का निर्माण करेगा. जो अंततः यथार्थ पर भी 65 (INDIA) बनाम 35 (NDA) में अनुवादित हो सकता है.