भारत के महानियंत्रक और लेखा परीक्षक (CAG) ने साल 2020-21 में Derailment in Indian Railways नाम से अपनी ऑडिट रिपोर्ट तैयार की। 2017-18 और 2020-21 के चार सालों में बड़े अफसरों ने पटरियों के निरीक्षण के लिए जाना भी कम कर दिया। 2017-18 में जहां 607 इंस्पेक्शन हुए, वहीं 2020-21 में महज 286 हुए। यह हाल तब है जब 10,000 किलोमीटर लंबे ट्रंक रूट पर क्षमता से दोगुने से भी ज्यादा (125%) भार है। 2017-18 में वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा था कि एक लाख करोड़ रुपए के साथ राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष बनाएंगे। इसके लिए पांच साल तक 20-20 हजार करोड़ रुपए देना था। 15000 करोड़ रुपए सरकार देती, 5000 करोड़ रुपए रेलवे को अपने संसाधनों से जुटाना था। रेलवे यह रकम जुटा ही नहीं पाई। रेल सेफ्टी के लिहाज से भारत का ग्राफ मिस्र, मेक्सिको, तंजानिया, कांगो, नाइजीरिया और पाकिस्तान जैसे मुल्कों से थोड़ा ही बेहतर होगा। ट्रेनों के बेपटरी होने की 1129 हादसों की जांच रिपोर्ट का विश्लेषण किया गया तो पाया कि 167 दुर्घटनाओं की वजह ट्रैक के रखरखाव से जुड़ी थी। इसके बावजूद ट्रैक का इंस्पेक्शन कम हो गया और ट्रैक रिन्यूअल पर खर्च भी घटा दिया गया।
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